नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) या राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम-2010 द्वारा भारत में एक राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल NGT) की स्थापना की गई है।पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन तथा व्यक्तियों एवं संपत्ति के नुकसान के लिए सहायता और क्षतिपूर्ति देने या पर्यावरण संबंधित मामलों सहित, पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण आदि मामलों के प्रभावी और शीघ्रगामी निपटारे के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण का गठन 18.10.2010 को किया गया है।
यह एक
विशिष्ट निकाय है जो
बहु-अनुशासनात्मक समस्याओं
वाले पर्यावरणीय विवादों के निपटारे के लिए आवश्यक विशेषज्ञता द्वारा
सुसज्जित है। NGT,
सिविल प्रक्रिया संहिता-1908 के अंतर्गत
निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य
नहीं होगा, लेकिन
नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों
द्वारा निर्देशित किया जाएगा । पर्यावरण संबंधी मामलों में
अधिकरण का समर्पित
क्षेत्राधिकार है जो की तीव्र
पर्यावरणीय न्याय प्रदान करेगा
तथा उच्च न्यायालयों
में मुकदमेबाज़ी के
भार को कम
करने में सहायता
करेगा ।
अधिकरण को आवेदनों या अपीलों के प्राप्त होने के 6 महीने के अंदर उनके निपटान का प्रयास करने का कार्य सौंपा गया है । आरंभिक रूप से, एनजीटी को पांच बैठक स्थलों पर स्थापित करना प्रस्तावित है , जो की इस प्रकार हैं - अधिकरण की बैठक का प्रधान स्थल नई दिल्ली होगा तथा भोपाल, पुणे, कोलकाता तथा चेन्नई अधिकरण की बैठकों के अन्य 4 स्थल होंगे. इसके सर्किट बेंच शिमला, शिलांग, जोधपुर और कोच्चि में है।
अधिकरण को आवेदनों या अपीलों के प्राप्त होने के 6 महीने के अंदर उनके निपटान का प्रयास करने का कार्य सौंपा गया है । आरंभिक रूप से, एनजीटी को पांच बैठक स्थलों पर स्थापित करना प्रस्तावित है , जो की इस प्रकार हैं - अधिकरण की बैठक का प्रधान स्थल नई दिल्ली होगा तथा भोपाल, पुणे, कोलकाता तथा चेन्नई अधिकरण की बैठकों के अन्य 4 स्थल होंगे. इसके सर्किट बेंच शिमला, शिलांग, जोधपुर और कोच्चि में है।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम-2010
संसद के
कानून, राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल
एक्ट-2010 को निम्नानुसार
परिभाषित करते है :-
"पर्यावरण
से संबंधित किसी
भी कानूनी अधिकार
को लागू करने
और क्षति के
लिए राहत और
क्षतिपूर्ति सहित वनों
और अन्य प्राकृतिक
संसाधनों के पर्यावरण
संरक्षण और संरक्षण
से संबंधित मामलों
के प्रभावी और
शीघ्र निपटान के
लिए राष्ट्रीय ग्रीन
ट्रिब्यूनल की स्थापना
के लिए एक
अधिनियम व्यक्तियों और संपत्तियों
और उनसे संबंधित
मामलों के साथ
या प्रासंगिक के
लिए है
"|
राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल भारतीय संविधान
के अनुच्छेद 21 से प्रेरित
है जो भारत
के नागरिकों को
स्वस्थ वातावरण का अधिकार
प्रदान करता है
एनजीटी को प्राकृतिक
न्याय के सिद्धांतों
द्वारा निर्देशित किया जाता
है ।
न्यायाधिकरण के अस्तित्व
में आने के
साथ राष्ट्रीय पर्यावरण
अपीली प्राधिकार अस्तित्व
में नहीं रह
जाएगा तथा उसके अंतर्गत सारे
मामले इस नए संस्था
को स्थानांतरित कर
दिया गया है।
संरचना
इस अधिकरण में अधिकारियों
के 20 स्वीकृत पदों
में से अभी
ज्यादातर पद खाली
हैं। इस में पूर्णकालिक
अध्यक्ष के रूप
में भारत के
सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त
न्यायाधीश ,उच्च न्यायालय
के मुख्य न्यायाधीश(
न्यायिक सदस्य) और विशेषज्ञ
सदस्य (पर्यावरण के विभिन्न
क्षेत्रों के विशेषज्ञ
होंगे ) शामिल होते हैं
. प्रत्येक श्रेणी में निर्धारित
न्यायिक और विशेषज्ञ
सदस्य की न्यूनतम
संख्या 10 है तथा
प्रत्येक श्रेणी में अधिकतम
संख्या 20 होती है।
NGT प्रमुख (अध्यक्ष)
1.पहले अध्यक्ष
जस्टिस लोकेश्वर सिंह
पंत थे।
2011 में हिमाचल प्रदेश के लोकायुक्त बनाए जाने के बाद उन्होंने यह पद छोड़ दिया।
2. दूसरे अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार थे जो पिछले साल दिसंबर में रिटायर हो गए।
पिछले साल 20 दिसंबर को न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की सेवानिवृति के बाद एनजीटी अध्यक्ष का पद छह महीने से अधिक समय से खाली था।
- न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की सेवानिवृति के बाद न्यायमूर्ति उमेश दत्तात्रेय साल्वी को एनजीटी का कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया गया।वह 13 फरवरी को सेवानिवृत हुए।
- इसके बाद , न्यायमूर्ति जवाद रहीम को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया।
- अभी राष्ट्रीय राजधानी में एनजीटी की प्रधान पीठ काम कर रही है जिसमें न्यायमूर्ति रहीम , न्यायमूर्ति आर एस राठौड़ और न्यायमूर्ति एस एस गरब्याल शामिल हैं।
3. एनजीटी की स्थापना के बाद से गोयल इसके तीसरे पूर्णकालिक अध्यक्ष हैं। जस्टिस गोयल को जुलाई 2014 में सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस नियुक्त किया गया था। मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति एसीसी ने न्यायमूर्ति ए के गोयल को राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी के नए अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया है वह 5 साल के कार्यकाल या 70 वर्ष की आयु प्राप्ति तक इस पद को संभालेंगे।
2011 में हिमाचल प्रदेश के लोकायुक्त बनाए जाने के बाद उन्होंने यह पद छोड़ दिया।
2. दूसरे अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार थे जो पिछले साल दिसंबर में रिटायर हो गए।
पिछले साल 20 दिसंबर को न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की सेवानिवृति के बाद एनजीटी अध्यक्ष का पद छह महीने से अधिक समय से खाली था।
- न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की सेवानिवृति के बाद न्यायमूर्ति उमेश दत्तात्रेय साल्वी को एनजीटी का कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया गया।वह 13 फरवरी को सेवानिवृत हुए।
- इसके बाद , न्यायमूर्ति जवाद रहीम को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया।
- अभी राष्ट्रीय राजधानी में एनजीटी की प्रधान पीठ काम कर रही है जिसमें न्यायमूर्ति रहीम , न्यायमूर्ति आर एस राठौड़ और न्यायमूर्ति एस एस गरब्याल शामिल हैं।
3. एनजीटी की स्थापना के बाद से गोयल इसके तीसरे पूर्णकालिक अध्यक्ष हैं। जस्टिस गोयल को जुलाई 2014 में सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस नियुक्त किया गया था। मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति एसीसी ने न्यायमूर्ति ए के गोयल को राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी के नए अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया है वह 5 साल के कार्यकाल या 70 वर्ष की आयु प्राप्ति तक इस पद को संभालेंगे।
आनंद कुमार गोयल A .K.Goyal
इस पद पर
नियुक्ति से पहले
ए के गोयल
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश
के रूप में
सेवारत थे न्यायमूर्ति ए के
गोयल ने वर्ष
1974 में वकालत के क्षेत्र
में कदम रखा
उन्होंने पंजाब और हरियाणा
उच्च न्यायालय में
5 सालों तथा सुप्रीम
कोर्ट और दिल्ली
उच्च न्यायालय में
22 सालों तक अभ्यास
किया सितंबर 2011 में
गुवाहाटी उच्च न्यायालय
में उनका स्थानांतरण
होने से पहले
उन्हें वर्ष 2001 में पंजाब
और हरियाणा उच्च
न्यायालय में न्यायाधीश
के रूप में
नियुक्त किया गया
था बाद में
उन्हें अक्टूबर 2013 में उड़ीसा
उच्च न्यायालय के
मुख्य न्यायाधीश के
रूप में स्थानांतरित
कर दिया गया
तथा जुलाई 2014 में
उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के
न्यायाधीश के रूप
में नियुक्त किया
गया।
भारत राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण
व्यवस्था शुरू कर
दुनिया में ऐसा
तीसरा देश बन
गया है, जहाँ
पर्यावरण मामलों की सुनवाई
के लिए विशेष
अदालतें चलती हैं।
भारत से पहले ऑस्ट्रेलिया
और न्यूजीलैंड ही
केवल दो देश
हैं, जिनके पास
पर्यावरण संबंधी मसलों के
निपटारे के लिए
विशेष अदालत है।
एनजीटी के पास
कई
मामले
लंबित
पर्यावरण से जुड़े
कई मामले अभी
एनजीटी के समक्ष
लंबित हैं, जिनमें
वायु प्रदूषण, गंगा
और यमुना की
सफाई, वैष्णो देवी
और दिल्ली में
पुनर्विकास की विभिन्न
परियोजनाएं शामिल हैं। पदों
के खाली रहने
से एनजीटी का
कामकाज प्रभावित होता रहा
है।