World Anti Suicide Day
10 सितंबर को पूरे विश्व में एंटी सुसाइड डे मनाया जाता है। इस दिन लोगो से आत्महत्या न करने की अपील के साथ जगह-जगह पर जागरुकता अभियान चलाया जाता है। स्कूल, कॉलेज और सड़कों पर नुक्कड़ नाटक होते हैं तथा लोगो को उनकी जिंदगी का महत्व समझाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और वर्ल्ड फेडेरशन फॉर मेंटल हेल्थ (WFMH) के साथ मिल कर अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन (International Association for Suicide Prevention IASP) विश्व एंटी सुसाइड डे की मेजबानी करती है।
कब मनाया जाता है ?
इन आंकड़ों की भयावहता को देखते हुए आत्महत्या जैसे अपराध के प्रति जागरुकता एवं आत्महत्या करने से रोकने हेतु विभिन्न गतिविधियों के साथ विश्वव्यापी प्रतिबद्धता और कार्रवाई प्रदान करने के लिए विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (WSPD) 2003 से 10 सितंबर को दुनिया भर में प्रतिवर्ष एक जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
2011 में अनुमानित 40 देशों ने इस अवसर को चिह्नित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए। 2014 में जारी WHO के मानसिक स्वास्थ्य एटलस में बताया गया की कम आय वाले देश में राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम की रणनीति नहीं होने की सूचना दी गई, जबकि कम-मध्यम आय वाले देशों में से 10% से कम देशों में रणनीति थी, और लगभग एक तिहाई ऊपरी-मध्य और उच्च आय वाले देशों में ऐसी रणनीति अपनायी गयी थी।
प्रथम आत्महत्या निरोधी दिवस (Anti Suicide Day) 2003 में , 1999 के विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक आत्महत्या रोकथाम पहल का कार्यान्वयन करने के लिए मुख्य रणनीति के संबंध में उल्लेख किया गया :-
1. आत्मघाती व्यवहार और प्रभावी ढंग से उन्हें रोकने के तरीके के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय बहु-क्षेत्रीय गतिविधियों का संगठन।
2. राष्ट्रीय नीतियों और आत्महत्या रोकथाम के लिए योजनाओं का विकास और मूल्यांकन करने के लिए देशों की क्षमताओं को सुदृढ़ बनाना।
आत्महत्या के आंकड़े
प्रति वर्ष अनुमानित 8 -10 लाख लोग आत्महत्या से मर जाते हैं अर्थात 10,000 में से एक व्यक्ति, या प्रत्येक 40 सेकंड 1 आत्महत्या से मृत्यु या लगभग 3,000 मृत्यु हर दिन। 2020 तक आत्महत्या से मरने वाले लोगों की संख्या प्रति वर्ष 1.5 मिलियन तक पहुंचने की आशंका है।
औसतन, पुरुष : महिला का अनुपात 3:1 है (इनमे अलग-अलग देशो के विभिन्न आयु वर्ग के लोग शामिल हैं)। इसके विपरीत, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में आत्महत्या के प्रयासों का अनुपात की दर 2:3 (पुरुष:महिला) है। हत्या और युद्ध की तुलना में अधिक लोग आत्महत्या से मर जाते हैं; यह दुनिया भर में मृत्यु का 13 वां प्रमुख कारण है।
WHO के मुताबिक प्रत्येक बीस लोग जो आत्महत्या का प्रयास करते है उनमे से 1 की ही मृत्यु होती है, इसका मतलब है की हर 3 सेकंड में 1 आत्महत्या का प्रयास किया जाता है।
आत्महत्या 15 से 24 वर्ष के लोगों के लिए "मौत का सबसे आम कारण है।"
WHO के अनुसार, दुनिया में होने वाली सभी हिंसक मौतों में से लगभग आधे मौत आत्महत्या की वजह से ही होते हैं। ब्रायन मिशारा (पूर्व अध्यक्ष IASP) ने आंकलन किया कि, "युद्धों, आतंकवादी कृत्यों और पारस्परिक हिंसा से होने वाली मौतों की तुलना में आत्महत्या का दर ज्यादा है।"
WHO के द्वारा रिपोर्ट दिया गया था की 2008 तक 15- 29 वर्ष के आयुवर्ग में आत्महत्या का दर सर्वाधिक होता है, जबकि 80+ आयुवर्ग में आत्महत्या सबसे कम है। जबकि सभी उम्र समूहों के लिए आत्महत्या का दर 27.8 प्रति 100,000 थी। 2015 में सुधार के साथ वैश्विक आयु-मानकीकृत दर 10.7 प्रति 100,000 है।
सामाजिक मानदंड आत्मघाती व्यवहार के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 19 वीं शताब्दी के सामाजिक अध्ययनों से पता चलता है की औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण के प्रभावों से आत्महत्या में वृद्धि हुई है क्योंकि नए शहरीकृत समुदायों और आधुनिक सोच से आत्म विनाशकारी व्यवहार के प्रति संवेदनशीलता में कमी आयी है तथा बहुत सारे दबाव भी जन-जीवन पर पड़ने के कारण लोगों को आत्महत्या करना पड़ता है।
आत्महत्या के कारक
अलग-अलग स्रोतों से आत्महत्या के विषय पर महत्वपूर्ण उद्धरणों का संक्षिप्त सारांश बताता है:
"मुख्यतः आत्महत्या गरीबी, बेरोजगारी, ऋण-लोन, किसी प्रियजन की मृत्यु या बिछड़ जाना या अलग हो जाना, यौन अभिविन्यास, सम्मान विघटन, कानूनी समस्याएं, दबाव या कार्य-संबंधी समस्याएं तथा कई जटिल समाजशास्त्रीय कारकों का परिणाम हैं।"
दुनिया भर में, आत्महत्या को धार्मिक या सांस्कृतिक कारणों से गलत और निंदनीय समझा जाता है। कुछ देशों में, आत्मघाती व्यवहार अपराध है और कानून द्वारा दंडनीय है। इसलिए आत्महत्या प्रायः एक गुप्त कार्य होता है। आत्महत्या को कलंक के रूप में देखा जाता है इसलिए जिन्होंने आत्महत्या करने का प्रयास किया है, वे मदद नहीं लेते और इसलिए उनकी सहायता नहीं हो पाती ऐसी घटनाएं छुपा दी जाती है और फिर मानसिक विकार दूर नहीं किया जा सकता। आत्महत्या की रोकथाम को बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में चिन्हित कर आत्महत्या को रोकने के लिए जागरूकता लाने की ज़रूरत है, इसके लिए इस मुद्दे पर खुलेआम चर्चा होनी चाहिए। बहुत सारे असफल प्रयास करने वाले पुनः आत्महत्या का प्रयास करते है और इससे आंकड़े बढ़ते जाते हैं, इससे बचने के लिए उनका काउंसिलिंग किया जाना चाहिए।
शारीरिक और विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य अवसाद जैसे मुद्दों को के कारन भी आत्महत्या की घटना बढ़ जाती है। वित्तीय समस्याएं, दुर्व्यवहार, आक्रामकता, शोषण और दुर्व्यवहार का अनुभव ऐसी दर्दभरी भावनाएं हैं जिसका योगदान आत्महत्या में हो सकता है। आम तौर नशा और शराब का दुरुपयोग भी आत्महत्या में निभाता है।
जीवनशैली में बदलाव बन रहा आत्महत्या का कारण - आत्महत्या एक lifestyle disease (जीवन शैली की बीमारी)है। आधुनिक उपकरणों का ज्यादा इस्तेमाल दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहें हैं, इसके अत्यधिक उपयोग से कई बार लोग अपने वास्तविक दुनिया से काल्पनिक दुनिया या आभासी दुनिया में चले जाते हैं, जिससे आगे चलकर तनाव, अवसाद बढ़ जाता है। जब बात सहयोग और साथ की आती है तब ये इंटरनेट और मोबाइल की दुनिया के ज्यादातर दोस्त सामने नहीं आते फिर यही अवस्था आगे चलकर आत्महत्या जैसी समस्याओं का कारण बनती है।
पहले मुकेश पाण्डेय कलेक्टर बक्सर और अब सुरेन्द्र दास एस.पी कानपुर जैसे अफसरों ने आत्महत्या कर लिया। पैसा, पद, प्रतिष्ठा होने के बावजूद ये लोग पारिवारिक तनाव नही झेल पाए और अपने जीवन को समाप्त करना उचित समझा। upsc की परीक्षा में जब उन्हें सफलता मिली होगी तो उन्हें लगा होगा कि दुनिया की सबसे बड़ी सफलता प्राप्त कर ली, लेकिन एक कहावत है कि आदमी कितना भी शक्तिशाली हो जाएं अपनों से हार जाता है।
आज के भाग-दौड़ भरी जीवन शैली में सबसे महत्वपूर्ण है पारिवारिक सुख। अपने जीवनसाथी के साथ विचारो का सही तालमेल होना जरुरी है। 2017 के आकड़ो के अनुसार भारत में 150 से ज्यादा ऐसे प्रशासनिक अधिकारी है जिन्होंने पारिवारिक झगड़े के कारण अपनी जान दे दी साथ ही देश ने सैकड़ो होनहार अधिकारी भी खो दिए।
आत्महत्या रोकने हेतु महत्वपूर्ण सुझाव
दुनियाभर में अधिकतर तनावग्रस्त लोग यह समझते हैं कि उनकी परेशानियों का अंत केवल आत्महत्या करना ही है। आत्महत्या का ख्याल न केवल आम लोगो को ही आता है बल्कि समृद्ध, पढ़े-लिखे, ओहदेदार लोगों के साथ-साथ नेता-मंत्री और फ़िल्मी कलाकार भी इसकी चपेट में आकर जान दे चुके हैं। आवेगवश लोग आत्महत्या या आत्महत्या का प्रयास तो कर लेते हैं मगर जो लोग बच जाते हैं, उनको जिंदगी भर इस बात का पछतावा रहता है।
विश्व एंटी सुसाइड डे पर खास टिप्स-
1. स्वस्थ्य वर्धक खाना खाएं :- एक अच्छा भोजन न आपको स्वस्थ रखेगा बल्कि तनाव से भी मुक्ति देगा। इसलिए आप ऐसे भोजन ले जो आपको पेट भरने के साथ ही खुशी देते हो हों और आपका मूड बदल देते हों।
2. संगीत सुने: जब भी आपको तनावग्रस्त या खराब महसूस हों तो, अपना मन पसंद संगीत सुनें या गुनगुनाये यदि फिर भी तनाव कम न हो तो तेज संगीत सुने। मगर ध्यान रहे कि दुखी मन में दुख भरे गाने न सुने नहीं वरना आपका तनाव कम होने के बजाय बढ़ जायेगा ज्यादा उदास हो जाएंगे।
3. बात करें :- यह महत्वपूर्ण कदम है इसे हमेशा पालन करें, जब भी आपके मन में चिंता, दुःख, तनाव या कुछ भी मानसिक समस्या उत्पन्न हो आपको डिप्रेशन महसूस हो तो आप किसी अपने से बात करें, यदि वहां कोई अपना न हो तो आस पास में किसी भी अजनबी से बात कर मन हल्का करने का प्रयास करें। इस समय बिल्कुल भी अकेले न रहें क्योकि आपके मन में नकारात्मक विचार आएंगे।
4. अपने आप को समय दे :- यदि लगे की आप अपने जीवन में कुछ नहीं कर पा रहे तो खुद को थोड़ा समय दे और विचार करे की कमी कहा पर रह गयी , जीवन से हार के कोई गलत कदम न उठायें।
5. तनाव से बचें :- काम के दबाव या पारिवारिक समस्या का मिलकर सामना करें एवं समय- समय पर अपने तन-मन को तरोताज़ा रखने के लिए अपने मन का काम भी करते रहें, जैसे की - घूमना , फिल्मे देखना etc.
6. माता - पिता के संपर्क में रहें :- ये दुनिया भर के लोगो में आपको सबसे ज्यादा चाहने वाले होते हैं इसलिए सुख हो या दुःख इनसे संपर्क बना कर रखें।
7. परवरिश में बदलाव है जरूरी :- आज जमाना काफी आगे बढ़ चुका है और बच्चों के सोचने के तौर- तरीकों में काफी बदलाव आ चुके हैं, इसके बावजूद बहुत सारे पालक आज भी अपने बच्चों को पुराने तौर-तरीकों से परवरिश दे रहे हैं। बदलावों के साथ सामंजस्य न बैठा पाना और गलत पालन पोषण को आत्महत्या का बड़ा कारण माना जा रहा है। बदलते समाज में पालकों को अपने आप को बदलकर परवरिश करनी चाहिए जो की वर्तमान समय के अनुकूल हो ताकि बच्चों की भावनाओं और जरूरतों को समझा जा सके।
8. जीवनशैली में उतना ही बदलाव करें जितना आवश्यक हो और आधुनिक उपकरणों जैसे की मोबाइल, इंटरनेट, फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि से उतना ही संपर्क रखे जिससे आपकी वास्तविक दुनिया प्रभावित न हो।
9. आत्महत्या के असफल प्रयास करने वालों पर ध्यान दें :- आत्महत्या के करीब 80 फीसदी मामलों में आत्महत्या का फैसला अचानक से नहीं लिया जाता। आत्महत्या का विचार धीरे-धीरे पनपती है, इस दौरान व्यक्ति में इस विचार के कई लक्षण भी सामने आने लगते हैं। वही आत्महत्या के लगभग 90 फीसदी मामलों में पहली कोशिश नाकाम हो जाती है और व्यक्ति दूसरी बार फिर से कोशिश कर सकता है। इन 80-90 फीसदी लोगो पर और इनकी समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान देना आवश्यक है।
10. परीक्षा का दबाव न लें :- अधिकतर बच्चे या युवा परीक्षा के डर से अपनी जान दे देते हैं, ऐसे में शिक्षकों और पालकों को ध्यान देने की आवश्यकता है की वे बच्चों को उत्साहित करे और समझाएं की अंकों की दौड़ में शामिल न हो बल्कि मन का करें और पूरी लगन से करें, परिणाम से जीवन का निर्धारण न करे।
11. अपना दम्पति जीवन सम्हालें - पति-पत्नी आपसी तालमेल से घर चलाएं साथ ही अपने जीवनसाथी के भावनाओं का सम्मान भी करें, उनकी प्राथमिकतायें , पसंद-नापसंद को समझें।
प्राथमिकताएं
आत्महत्या रोकथाम की प्राथमिकताओं को इस प्रकार समझ सकते हैं :-
2003 - "Suicide Can Be Prevented!".
2004 - "Saving Lives, Restoring Hope".
2005 - "Prevention of Suicide is Everybody's Business ".
2006 - "With Understanding New Hope " .
2007 - "Suicide prevention across the Life Span".
2008 - "Think Globally, Plan Nationally, Act Locally".
2009 - "Suicide Prevention in Different Cultures".
2010 - "Families, Community Systems and Suicide".
2011 - "Preventing Suicide in Multicultural Societies".
2012 - "Suicide Prevention across the Globe: Strengthening Protective Factors and Instilling Hope".
2013 - "Stigma: A Major Barrier to Suicide Prevention".
2014 - "Light a candle near a Window".
2015 - "Preventing Suicide: Reaching Out and Saving Lives".
2016 - "Connect, Communicate, Care".
2017 - "Take a Minute, Change a Life".
2018 - “Working Together to Prevent Suicide”.
वैश्विक आत्महत्या के आंकड़ों का विश्लेषण
World Suicide Prevention Day (विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस)
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) की रिपोर्टः “Preventing Suicide: A Global Imperative” के अनुसार संपूर्ण विश्व से अनुमानतः 800,000 से ज्यादा लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या करके अपनी जान दे देते हैं - अर्थात हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति।10 सितंबर को पूरे विश्व में एंटी सुसाइड डे मनाया जाता है। इस दिन लोगो से आत्महत्या न करने की अपील के साथ जगह-जगह पर जागरुकता अभियान चलाया जाता है। स्कूल, कॉलेज और सड़कों पर नुक्कड़ नाटक होते हैं तथा लोगो को उनकी जिंदगी का महत्व समझाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और वर्ल्ड फेडेरशन फॉर मेंटल हेल्थ (WFMH) के साथ मिल कर अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन (International Association for Suicide Prevention IASP) विश्व एंटी सुसाइड डे की मेजबानी करती है।
कब मनाया जाता है ?
इन आंकड़ों की भयावहता को देखते हुए आत्महत्या जैसे अपराध के प्रति जागरुकता एवं आत्महत्या करने से रोकने हेतु विभिन्न गतिविधियों के साथ विश्वव्यापी प्रतिबद्धता और कार्रवाई प्रदान करने के लिए विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (WSPD) 2003 से 10 सितंबर को दुनिया भर में प्रतिवर्ष एक जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
2011 में अनुमानित 40 देशों ने इस अवसर को चिह्नित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए। 2014 में जारी WHO के मानसिक स्वास्थ्य एटलस में बताया गया की कम आय वाले देश में राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम की रणनीति नहीं होने की सूचना दी गई, जबकि कम-मध्यम आय वाले देशों में से 10% से कम देशों में रणनीति थी, और लगभग एक तिहाई ऊपरी-मध्य और उच्च आय वाले देशों में ऐसी रणनीति अपनायी गयी थी।
प्रथम आत्महत्या निरोधी दिवस (Anti Suicide Day) 2003 में , 1999 के विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक आत्महत्या रोकथाम पहल का कार्यान्वयन करने के लिए मुख्य रणनीति के संबंध में उल्लेख किया गया :-
1. आत्मघाती व्यवहार और प्रभावी ढंग से उन्हें रोकने के तरीके के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय बहु-क्षेत्रीय गतिविधियों का संगठन।
2. राष्ट्रीय नीतियों और आत्महत्या रोकथाम के लिए योजनाओं का विकास और मूल्यांकन करने के लिए देशों की क्षमताओं को सुदृढ़ बनाना।
आत्महत्या के आंकड़े
प्रति वर्ष अनुमानित 8 -10 लाख लोग आत्महत्या से मर जाते हैं अर्थात 10,000 में से एक व्यक्ति, या प्रत्येक 40 सेकंड 1 आत्महत्या से मृत्यु या लगभग 3,000 मृत्यु हर दिन। 2020 तक आत्महत्या से मरने वाले लोगों की संख्या प्रति वर्ष 1.5 मिलियन तक पहुंचने की आशंका है।
औसतन, पुरुष : महिला का अनुपात 3:1 है (इनमे अलग-अलग देशो के विभिन्न आयु वर्ग के लोग शामिल हैं)। इसके विपरीत, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में आत्महत्या के प्रयासों का अनुपात की दर 2:3 (पुरुष:महिला) है। हत्या और युद्ध की तुलना में अधिक लोग आत्महत्या से मर जाते हैं; यह दुनिया भर में मृत्यु का 13 वां प्रमुख कारण है।
WHO के मुताबिक प्रत्येक बीस लोग जो आत्महत्या का प्रयास करते है उनमे से 1 की ही मृत्यु होती है, इसका मतलब है की हर 3 सेकंड में 1 आत्महत्या का प्रयास किया जाता है।
आत्महत्या 15 से 24 वर्ष के लोगों के लिए "मौत का सबसे आम कारण है।"
WHO के अनुसार, दुनिया में होने वाली सभी हिंसक मौतों में से लगभग आधे मौत आत्महत्या की वजह से ही होते हैं। ब्रायन मिशारा (पूर्व अध्यक्ष IASP) ने आंकलन किया कि, "युद्धों, आतंकवादी कृत्यों और पारस्परिक हिंसा से होने वाली मौतों की तुलना में आत्महत्या का दर ज्यादा है।"
WHO के द्वारा रिपोर्ट दिया गया था की 2008 तक 15- 29 वर्ष के आयुवर्ग में आत्महत्या का दर सर्वाधिक होता है, जबकि 80+ आयुवर्ग में आत्महत्या सबसे कम है। जबकि सभी उम्र समूहों के लिए आत्महत्या का दर 27.8 प्रति 100,000 थी। 2015 में सुधार के साथ वैश्विक आयु-मानकीकृत दर 10.7 प्रति 100,000 है।
सामाजिक मानदंड आत्मघाती व्यवहार के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 19 वीं शताब्दी के सामाजिक अध्ययनों से पता चलता है की औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण के प्रभावों से आत्महत्या में वृद्धि हुई है क्योंकि नए शहरीकृत समुदायों और आधुनिक सोच से आत्म विनाशकारी व्यवहार के प्रति संवेदनशीलता में कमी आयी है तथा बहुत सारे दबाव भी जन-जीवन पर पड़ने के कारण लोगों को आत्महत्या करना पड़ता है।
आत्महत्या के कारक
अलग-अलग स्रोतों से आत्महत्या के विषय पर महत्वपूर्ण उद्धरणों का संक्षिप्त सारांश बताता है:
"मुख्यतः आत्महत्या गरीबी, बेरोजगारी, ऋण-लोन, किसी प्रियजन की मृत्यु या बिछड़ जाना या अलग हो जाना, यौन अभिविन्यास, सम्मान विघटन, कानूनी समस्याएं, दबाव या कार्य-संबंधी समस्याएं तथा कई जटिल समाजशास्त्रीय कारकों का परिणाम हैं।"
दुनिया भर में, आत्महत्या को धार्मिक या सांस्कृतिक कारणों से गलत और निंदनीय समझा जाता है। कुछ देशों में, आत्मघाती व्यवहार अपराध है और कानून द्वारा दंडनीय है। इसलिए आत्महत्या प्रायः एक गुप्त कार्य होता है। आत्महत्या को कलंक के रूप में देखा जाता है इसलिए जिन्होंने आत्महत्या करने का प्रयास किया है, वे मदद नहीं लेते और इसलिए उनकी सहायता नहीं हो पाती ऐसी घटनाएं छुपा दी जाती है और फिर मानसिक विकार दूर नहीं किया जा सकता। आत्महत्या की रोकथाम को बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में चिन्हित कर आत्महत्या को रोकने के लिए जागरूकता लाने की ज़रूरत है, इसके लिए इस मुद्दे पर खुलेआम चर्चा होनी चाहिए। बहुत सारे असफल प्रयास करने वाले पुनः आत्महत्या का प्रयास करते है और इससे आंकड़े बढ़ते जाते हैं, इससे बचने के लिए उनका काउंसिलिंग किया जाना चाहिए।
शारीरिक और विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य अवसाद जैसे मुद्दों को के कारन भी आत्महत्या की घटना बढ़ जाती है। वित्तीय समस्याएं, दुर्व्यवहार, आक्रामकता, शोषण और दुर्व्यवहार का अनुभव ऐसी दर्दभरी भावनाएं हैं जिसका योगदान आत्महत्या में हो सकता है। आम तौर नशा और शराब का दुरुपयोग भी आत्महत्या में निभाता है।
जीवनशैली में बदलाव बन रहा आत्महत्या का कारण - आत्महत्या एक lifestyle disease (जीवन शैली की बीमारी)है। आधुनिक उपकरणों का ज्यादा इस्तेमाल दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहें हैं, इसके अत्यधिक उपयोग से कई बार लोग अपने वास्तविक दुनिया से काल्पनिक दुनिया या आभासी दुनिया में चले जाते हैं, जिससे आगे चलकर तनाव, अवसाद बढ़ जाता है। जब बात सहयोग और साथ की आती है तब ये इंटरनेट और मोबाइल की दुनिया के ज्यादातर दोस्त सामने नहीं आते फिर यही अवस्था आगे चलकर आत्महत्या जैसी समस्याओं का कारण बनती है।
पहले मुकेश पाण्डेय कलेक्टर बक्सर और अब सुरेन्द्र दास एस.पी कानपुर जैसे अफसरों ने आत्महत्या कर लिया। पैसा, पद, प्रतिष्ठा होने के बावजूद ये लोग पारिवारिक तनाव नही झेल पाए और अपने जीवन को समाप्त करना उचित समझा। upsc की परीक्षा में जब उन्हें सफलता मिली होगी तो उन्हें लगा होगा कि दुनिया की सबसे बड़ी सफलता प्राप्त कर ली, लेकिन एक कहावत है कि आदमी कितना भी शक्तिशाली हो जाएं अपनों से हार जाता है।
आज के भाग-दौड़ भरी जीवन शैली में सबसे महत्वपूर्ण है पारिवारिक सुख। अपने जीवनसाथी के साथ विचारो का सही तालमेल होना जरुरी है। 2017 के आकड़ो के अनुसार भारत में 150 से ज्यादा ऐसे प्रशासनिक अधिकारी है जिन्होंने पारिवारिक झगड़े के कारण अपनी जान दे दी साथ ही देश ने सैकड़ो होनहार अधिकारी भी खो दिए।
आत्महत्या रोकने हेतु महत्वपूर्ण सुझाव
दुनियाभर में अधिकतर तनावग्रस्त लोग यह समझते हैं कि उनकी परेशानियों का अंत केवल आत्महत्या करना ही है। आत्महत्या का ख्याल न केवल आम लोगो को ही आता है बल्कि समृद्ध, पढ़े-लिखे, ओहदेदार लोगों के साथ-साथ नेता-मंत्री और फ़िल्मी कलाकार भी इसकी चपेट में आकर जान दे चुके हैं। आवेगवश लोग आत्महत्या या आत्महत्या का प्रयास तो कर लेते हैं मगर जो लोग बच जाते हैं, उनको जिंदगी भर इस बात का पछतावा रहता है।
विश्व एंटी सुसाइड डे पर खास टिप्स-
1. स्वस्थ्य वर्धक खाना खाएं :- एक अच्छा भोजन न आपको स्वस्थ रखेगा बल्कि तनाव से भी मुक्ति देगा। इसलिए आप ऐसे भोजन ले जो आपको पेट भरने के साथ ही खुशी देते हो हों और आपका मूड बदल देते हों।
2. संगीत सुने: जब भी आपको तनावग्रस्त या खराब महसूस हों तो, अपना मन पसंद संगीत सुनें या गुनगुनाये यदि फिर भी तनाव कम न हो तो तेज संगीत सुने। मगर ध्यान रहे कि दुखी मन में दुख भरे गाने न सुने नहीं वरना आपका तनाव कम होने के बजाय बढ़ जायेगा ज्यादा उदास हो जाएंगे।
3. बात करें :- यह महत्वपूर्ण कदम है इसे हमेशा पालन करें, जब भी आपके मन में चिंता, दुःख, तनाव या कुछ भी मानसिक समस्या उत्पन्न हो आपको डिप्रेशन महसूस हो तो आप किसी अपने से बात करें, यदि वहां कोई अपना न हो तो आस पास में किसी भी अजनबी से बात कर मन हल्का करने का प्रयास करें। इस समय बिल्कुल भी अकेले न रहें क्योकि आपके मन में नकारात्मक विचार आएंगे।
4. अपने आप को समय दे :- यदि लगे की आप अपने जीवन में कुछ नहीं कर पा रहे तो खुद को थोड़ा समय दे और विचार करे की कमी कहा पर रह गयी , जीवन से हार के कोई गलत कदम न उठायें।
5. तनाव से बचें :- काम के दबाव या पारिवारिक समस्या का मिलकर सामना करें एवं समय- समय पर अपने तन-मन को तरोताज़ा रखने के लिए अपने मन का काम भी करते रहें, जैसे की - घूमना , फिल्मे देखना etc.
6. माता - पिता के संपर्क में रहें :- ये दुनिया भर के लोगो में आपको सबसे ज्यादा चाहने वाले होते हैं इसलिए सुख हो या दुःख इनसे संपर्क बना कर रखें।
7. परवरिश में बदलाव है जरूरी :- आज जमाना काफी आगे बढ़ चुका है और बच्चों के सोचने के तौर- तरीकों में काफी बदलाव आ चुके हैं, इसके बावजूद बहुत सारे पालक आज भी अपने बच्चों को पुराने तौर-तरीकों से परवरिश दे रहे हैं। बदलावों के साथ सामंजस्य न बैठा पाना और गलत पालन पोषण को आत्महत्या का बड़ा कारण माना जा रहा है। बदलते समाज में पालकों को अपने आप को बदलकर परवरिश करनी चाहिए जो की वर्तमान समय के अनुकूल हो ताकि बच्चों की भावनाओं और जरूरतों को समझा जा सके।
8. जीवनशैली में उतना ही बदलाव करें जितना आवश्यक हो और आधुनिक उपकरणों जैसे की मोबाइल, इंटरनेट, फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि से उतना ही संपर्क रखे जिससे आपकी वास्तविक दुनिया प्रभावित न हो।
9. आत्महत्या के असफल प्रयास करने वालों पर ध्यान दें :- आत्महत्या के करीब 80 फीसदी मामलों में आत्महत्या का फैसला अचानक से नहीं लिया जाता। आत्महत्या का विचार धीरे-धीरे पनपती है, इस दौरान व्यक्ति में इस विचार के कई लक्षण भी सामने आने लगते हैं। वही आत्महत्या के लगभग 90 फीसदी मामलों में पहली कोशिश नाकाम हो जाती है और व्यक्ति दूसरी बार फिर से कोशिश कर सकता है। इन 80-90 फीसदी लोगो पर और इनकी समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान देना आवश्यक है।
10. परीक्षा का दबाव न लें :- अधिकतर बच्चे या युवा परीक्षा के डर से अपनी जान दे देते हैं, ऐसे में शिक्षकों और पालकों को ध्यान देने की आवश्यकता है की वे बच्चों को उत्साहित करे और समझाएं की अंकों की दौड़ में शामिल न हो बल्कि मन का करें और पूरी लगन से करें, परिणाम से जीवन का निर्धारण न करे।
11. अपना दम्पति जीवन सम्हालें - पति-पत्नी आपसी तालमेल से घर चलाएं साथ ही अपने जीवनसाथी के भावनाओं का सम्मान भी करें, उनकी प्राथमिकतायें , पसंद-नापसंद को समझें।
प्राथमिकताएं
आत्महत्या रोकथाम की प्राथमिकताओं को इस प्रकार समझ सकते हैं :-
- जोखिम और सुरक्षात्मक कारकों दोनों को संबोधित करते हुए आत्मघाती और गैर-आत्मघाती व्यवहार का अनुसंधान करना होगा।
- समुदाय में आत्मघाती व्यवहार के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से जागरूकता अभियानों को विकसित और कार्यान्वित करने की आवश्यकता है।
- न केवल जोखिम कारकों को कम करने के लिए बल्कि विशेष रूप से बाल्यावस्था और किशोरावस्था में सुरक्षात्मक कारक को मजबूत करने के हमारे प्रयासों को लक्षित करने की जरूरत है।
- साक्ष्य-आधारित जोखिम और आत्मघाती व्यवहार से जुड़े सुरक्षात्मक कारकों को बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
- प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक रोकथाम का गठन कर विकसित करने की आवश्यकता है।
- विभिन्न स्थितियों के इलाज में प्रभावी साबित होने वाले उपचारों का उपयोग और पालन करने की आवश्यकता है। उपचार की प्रभावशीलता में अनुसंधान को प्राथमिकता देने का प्रयास करना।
- मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों की उपलब्धता में वृद्धि और देखभाल तक पहुंचने के लिए बाधाओं को कम करने की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर नीति निर्माताओं को आत्महत्या रोकथाम के बारे में शोध साक्ष्य प्रसारित करने की आवश्यकता है।
- मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- उन लोगों तक पहुंचने की जरूरत है जो सहायता नहीं लेते हैं, और इसलिए जब उन्हें इसकी आवश्यकता होती है तो इलाज नहीं मिलता है।
- आत्महत्या अनुसंधान और रोकथाम के लिए निरंतर वित्त पोषण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- सभी देशों के लिए आत्महत्या रोकथाम रणनीतियों को विकसित करने और जीवन बचाने के लिए प्रदर्शित की गई रणनीतियों के कार्यान्वयन के लिए सरकारों को प्रभावित करने की आवश्यकता है।
2003 - "Suicide Can Be Prevented!".
2004 - "Saving Lives, Restoring Hope".
2005 - "Prevention of Suicide is Everybody's Business ".
2006 - "With Understanding New Hope " .
2007 - "Suicide prevention across the Life Span".
2008 - "Think Globally, Plan Nationally, Act Locally".
2009 - "Suicide Prevention in Different Cultures".
2010 - "Families, Community Systems and Suicide".
2011 - "Preventing Suicide in Multicultural Societies".
2012 - "Suicide Prevention across the Globe: Strengthening Protective Factors and Instilling Hope".
2013 - "Stigma: A Major Barrier to Suicide Prevention".
2014 - "Light a candle near a Window".
2015 - "Preventing Suicide: Reaching Out and Saving Lives".
2016 - "Connect, Communicate, Care".
2017 - "Take a Minute, Change a Life".
2018 - “Working Together to Prevent Suicide”.
वैश्विक आत्महत्या के आंकड़ों का विश्लेषण
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