Thursday, October 11, 2018

TITLI Cyclone - तितली तूफान


Titli Toofan या Titali Cyclone या तितली तूफान 


TITLI CYCLONE OR TITLI TOOFAN


तितली तूफान है क्या

 बंगाल की खाड़ी में पैदा हुआ तितली तूफान गुरुवार सवेरे ओडिशा और आँध्रप्रदेश के तटीय क्षेत्रों  में भारी बारिश करने के बाद आगे बढ़ रहा है इसकी रफ़्तार 126 किमी / घंटे है। जो की 165 किमी/घंटे का रूप भी ले सकता है। दोनों राज्यों के तटीय इलाकों में तूफान के कारण भारी बारिश और भूस्खलन की ख़बरें  रही हैं। तूफान के कारण कच्चे घरपेड़ और बिजली के खंभे आदि गिरने से कई जगहों में सड़क मार्ग अवरुद्ध हो गया है। रेल सेवाएं भी प्रभावित हुई हैं।

इसका नाम 'तितली' क्यों पड़ा ? 

लोगों के मन में एक सवाल उठ रहा है कि जब यह तूफान इतना भयावह रूप ले चुका है तो इसका नाम 'तितली' क्यों रखा गया है ? जबकि तितली तो इतनी नाजुक सी होती है। आइए हम आपको बताते हैं कि कैसे होता है इन तूफानों का नामकरण और क्या है नामकरण की प्रक्रिया...

1. बंगाल की खाड़ी से उठे तूफान का नाम 'तितली'  रखा गया है। यह नाम पाकिस्तान ने दिया है। 
किसी भी तूफान को नाम इसलिए दिया जाता है की आम लोगों और वैज्ञानिकों में इसे लेकर कोई ग़लतफ़हमी और असमंजस बना रहे। 
2 . बंगाल की खाड़ी से शुरू हुआ तूफान तितली (Titli Toofan या Titli Cyclone )उत्तर-पश्चिम की तरफ लगातार बढ़ रहा है। ओडिशा के बाद ज्यादा खतरा आँध्रप्रदेश के तटवर्ती इलाकों पर है। 

3 . तूफानों के नाम तय करने हेतु दुनिया भर में 5 कमेटियां बानी हुई हैं। 
    इन कमेटियों के नाम हैं
          (1) Escape Typhoon Committee 
          (2) Escape Panel of Tropical Cyclone 
          (3) RA -1 Tropical Cyclone Committee 
          (4) RA-4 Tropical Cyclone Committee
          (5) RA-5 Tropical Cyclone Committee

4 . शुरुआत में World Weather  Science  Organisation (विश्व मौसम विज्ञान संगठन) ने चक्रवातों के नाम रखने की पहल की जबकि भारत में तूफानों का नाम देने का चलन 2004 से शुरू हुआ था। हिंदमहासागर में आने वाले तूफानों का नाम इस क्षेत्र के 8 देश भारत, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाइलैंड रखते हैं। वर्ष 2000 से यह परंपरा शुरू हुई थी।      साल 2004 में सभी देशों के बीच तूफानों के नाम रखे जाने को लेकर सहमि बनीं। भारत के साथ-साथ बाकि के 7 देशों ने भी तूफानों का नाम देने का फॉर्मूला तैयार किया। इन 8 देशों की ओर से सुझाए गए नामों के पहले अक्षर के अनुसार उनका क्रम तय किया जाता है और उसी क्रम के अनुसार चक्रवातों के नाम रखे जाते हैं.

5 . इन सभी आठ देशों ने वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (World Meteorological Organization WMO) को नामों की लिस्ट सौपी है। इस संगठन का मुख्यालय जेनेवा में है। 

6 . हिंद क्षेत्र में तूफान आने पर WMO को दी गयी तूफानों के नाम की लिस्ट से बारी-बारी से नाम चुने जाते हैं  इसमें भारत ने 'अग्नि', 'बिजली', 'मेघ', सागरऔर 'आकाशजैसे नाम दिए वहींपाकिस्तान ने 'फानूस', 'लैला', 'वरदाह', 'निलोफर', 'बुलबुलऔर 'तितली' के अलावा 2 और नाम दिए थे।
   भारत में 10 साल तक एक नाम दोबारा प्रयोग नहीं किया जाता। साथ ही ज्यादा तबाही मचाने वाले चक्रवातों के नाम को निरस्त कर दिया जाता है। 
       इस बार पाकिस्तान की तरफ से भेजे गए तूफान का नाम चुना जाना था। इसलिए भारत में आए इस तूफान को पाकिस्तान द्वारा भेजे गए नामों में से "तितली " Titli  Cyclone  नाम दिया गया है। 
  इससे पहले पिछले साल मई में जो तूफान आया था 'ओखीउसे बांग्लादेश की ओर से दिया गया था। इससे पहले 2013 में ओडिशा और आंध्र प्रदेश में 'फेलिनतूफान कहर बरपा चुका है। इस साइक्लोन का नाम थाइलैंड की ओर से दिया गया था।
 
7 . अमेरिका हर साल तूफानों के 21 नामों की सूची तैयार करता है। हालांकि अंग्रेजी के हर अल्फाबेट से एक नाम रखा जाता है, लेकिन Q,U,X,Y और Z अल्फाबेट से तूफान का नाम रखने की परंपरा अमेरिका में नहीं है।अगर वहां एक साल में 21 से ज्यादा तूफान आएं तो फिर उनका नाम ग्रीक अल्फाबेट अल्फा, बीटा, गामा के नाम पर रख दिया जाता है। इन नामों में सम-विषम (Odd - Even) का फॉर्मूला अपनाया जाता है। जैसे सम सालों में चक्रवात का नाम औरतों के नाम पर रखा जाता है, जबकि विषम सालों में आए तूफान के नाम पुरुषों पर आधारित होते हैं। अर्थात ऑड साल जैसे कि भविष्य के वर्ष 2019, 2021 और 2023 में आने वाले तूफानों के नाम औरतों के नाम पर रखे जाएंगे। वहीं ईवन साल जैसे कि 2018, 2020 और 2022 में आने वाले तूफानों के नाम पुरुषों के नाम पर आधारित होंगे। 
TITLI CYCLONE OR TITLI TOOFAN GIF


Saturday, September 15, 2018

World Ozone Day

World Ozone Day

               
   जिस तरह वातावरण की मार से बचाने के लिए हमारे शरीर को कपड़ो या ऐसे ही किसी आवरण की आवश्यकता होती है वैसे ही ओजोन परत, पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक किरणों के से बचाती है।
                 वास्तव में ओजोन परत कोई ठोस नहीं अपितु गैस की एक नाजुक ढाल है जो चमत्कारिक तौर पर पृथ्वी के जन-जीवन को संरक्षित रखने में मदद करती है।

कब मनाया जाता है ?
           ओजोन हमारी धरती के लिए बहुत ही महत्व रखती है। इसके सम्बन्ध में पुरे विश्व भर में बहुत सारे प्रयास किये जा रहे हैं, मगर इसे सही रूप देने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1982 और 1987 में वैश्विक सभाएं आयोजित की गयी तथा एक प्रोटोकॉल निर्धारित किया गया जिसे मांट्रियल प्रोटोकॉल कहा गया जो की 1987 में दिया गया था। यह सभा कनाडा के मोंट्रियल में आयोजित था इसलिए इसका नाम  मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पड़ा।
संयुक्त राष्ट्र महासभा (U.N.O.) ने 19 दिसंबर 1994 को 16 सितम्बर को International Day for the Preservation of the Ozone Layer घोषित कर दिया।  1994 में ओजोन परत को हटाने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल 1987 के तहत ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस 16 सितंबर को मनाने का घोषणा किया गया जो की प्रोटोकॉल में हस्ताक्षर की तिथि थी। और तब से यह दिन पुरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय ओजोन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
16 सितम्बर 1995 पहला वर्ष था जब इस दिवस को दुनिया भर में मनाया गया था।

क्यों मनाया जाता है ?
          ओजोन परत ऑक्सीजन से बने अणुओं की एक परत है जो की हमारे वायुमंडल के समताप मंडल में स्थित है, ओजोन परत की समुद्र ताल से ऊंचाई 15-35 किमी है। ओजोन परत का निर्माण वायुमंडल में ही होता है जब सूरज की किरणों में उपस्थित पराबैंगनी किरण ऑक्सीजन परमाणुओं से क्रिया कर उनको को तोड़ती है और पुनः ऑक्सीजन के कणों को जोड़कर ओजोन का निर्माण करती है। इससे स्पष्ट है की यह परत पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी में आने से रोकती है। और यदि यह पृथ्वी तक पहुंच जाये तो पुरे धरती पर विनाश हो जायेगा क्योंकि पराबैंगनी विकिरण पुरे सजीव समुदाय चाहे पादप हो या जंतु सबके लिए हानिकारक है।
     इसलिए अधिकांश वैज्ञानिकों का मानना है कि बिना ओजोन परत के पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जासकती। ओजोन परत के क्षरण से  पौधों और जीवों पर बहुत बुरा असर पड़ेगा, यहां तक कि जलीय जीवन भी ओजोन की कमी के कारण नष्ट हो जाएगा।
     ओज़ोन परत में हानि से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने लगा है, इसका उदहारण है सर्दियों में मौसम का अपेक्षाकृत अधिक गर्म होना। गर्मी और सर्दी अब अनियमित रूप से होने लगी हैं और पर्वतों तथा ध्रुवों पर जमा हिमखंड गलना शुरू हो गया है।
     उपरोक्त के अलावा ओज़ोन परत क्षरण से त्वचा सम्बन्धी बीमारियां होने लगी है तथा कैंसर का खतरा बढ़ सा गया है।

ओजोन दिवस कैसे मनाया जाता है ?
          ओजोन के प्रति वैश्विक जागरूकता लाने हेतु राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों का आयोजन, विशेष संगोष्ठी, भाषण, वैज्ञानिक लेख और सरंक्षण के उपायों पर चर्चा किया जाता है।  यह आयोजन विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों, वैज्ञानिक संस्थानों तथा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा कराया जाता है। विद्यालयों - महाविद्यालयों में विज्ञान दिवस भी आयोजित किया जा सकता है।
     यह दिवस सभी धरतीवासियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है इसलिए जागरूकता हेतु हम अपने परिवार, दोस्तों और परिचितों के साथ अपने ग्रह को बचने पर अपने योगदान तथा समर्पण हेतु चर्चा कर सकते हैं।
इस दिवस में हानिकारक गैसों के उत्पादन और उपयोग को सीमित करने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों पर चर्चा किया जा सकता है तथा यह भी बताय जा सकता है की ओजोन परत कितनी तेजी से कम हो रही है? ओजोन परत कैसे बनती है और इसमें पैदा हुई कमी को रोकने के क्या उपाय हो सकते हैं?इसके लिए हम सभी संचार माध्यमों, मीडिया आदि का उपयोग भी कर सकते हैं।
     ओजोन दिवस पर जनता को ओजोन और में पर्यावरण के महत्व को बताने और इसे सुरक्षित रखने के महत्वपूर्ण साधनों के बारे में जागरूकता लाकर संपूर्ण बनाया जा सकता है।


ओजोन क्या है ?
          ओजोन मण्डल या ओजोन परत धरती का सुरक्षा कवच  है। इसकी उपस्थिति पृथ्वी की सतह से 15 से 35 किलोमीटर ऊंचाई तक Troposphere के ठीक उपर वाले भाग में है। ओजोन मण्डल या ओजोन परत में ओजोन गैस की मात्रा अधिक होती है। ओजोन का आणविक सूत्र O3   होता है। ओजोन गैस पराबैंगनी
विकिरणों के प्रभाव से ऑक्सीजन का परिवर्तित रूप होता है, इसमें तीक्ष्ण गंध होता है तथा प्रकृति- हल्के नीले रंग की गैस है।

ओजोन मण्डल या ओजोन परत का क्षरण (हानि )
           जैसे- जैसे दुनिया प्राकृतिक नियमों को अनदेखा कर आगे बढ़ने लगी है वैसे-वैसे दुष्परिणाम सामने आने लगा है। इसका ही स्वरुप है की विज्ञान व प्रोद्योगिकी के विकास के साथ ओजोन परत का क्षरण भी बढ़ता जा रहा है।
     ओजोन क्षरण का मुख्य कारण है शीतलन कार्य में उपयोग होने वाले वाले रसायन क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स (सी.एफ.सी.) .  इसके अलावा बढ़ते आणविक विस्फोट, कृषि में नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का प्रयोग और समताप मण्डल की ऊंचाई के स्तर पर उड़ने वाले सुपरसोनिक विमानों से छोड़े जाने वाले धुंए जिनमे नाइट्रस ऑक्साइड तथा क्लोरीन के मुक्त परमाणु होते हैं जो वहां फैली हुई ओजोन गैस से क्रिया कर उन्हें पुनः ऑक्सीजन में बदल देते हैं। और ये परिवर्तित ऑक्सीजन पृथ्वी की सतह की और लौटने लगती हैं जिससे वहां पर ओजोन गैस की मात्रा कम हो जाती है और ओजोन का परत धीरे-धीरे क्षीण पड़ने लगता है।


ओजोन सरंक्षण के उपाय 

  • सबसे पहले तो पर्यावरण का संरक्षण करें, 
  • पेड़ पौधों का दोहन काम करें, 
  • क्लोरो फ्लोरो कार्बन्स के उपयोग से बचें, 
  • आणविक विस्फोट को सुरक्षित तौर पर करें 
  • नाइट्रोजन युक्त ईंधन और उर्वरकों को कम करें अथवा इनके व्यवस्थापन की युक्ति इज़ाद करें 
  • लोगों को जागरूक करें की इन सभी हानिकारक माध्यमों या इनके उत्पादों का उपयोग कम करें


ओजोन संरक्षण हेतु थीम 
          ओजोन परत या ओजोन मंडल के संरक्षण की जागरूकता के लिए हर वर्ष एक विषय निर्धारित किया जाता है, इसे ही हम ओजोन थीम कहते हैं और यह थीम साल-दर-साल बदलती रहती है। अर्थात किसी भी थीम को दोबारा दोहराया नहीं जाता। थीम्स में ओजोन परत के संरक्षण के उद्देश्य को शामिल किया जाता है और एक विषय पर आधारित प्रयास को उल्लेखित किया जाता है  । पिछले वर्षों की थीम इस प्रकार हैं :-

  • 2002 का थीम - "हमारे आकाश को बचाएं: खुद को सुरक्षित रखें; ओजोन परत की रक्षा करें"
  • 2003 का थीम - "हमारे आकाश को बचाएं: हमारे बच्चों के लिए ओजोन छेद बहुत अधिक है"
  • 2004 का थीम - "हमारे आकाश को बचाएं: हमारा टारगेट, ओजोन फ्रेंडली प्लैनेट "
  • 2004 का थीम - "हमारे आकाश को बचाएं: हमारा टारगेट, ओजोन फ्रेंडली प्लैनेट "
  • 2005 का थीम - "ओजोन दोस्ताना अधिनियम - सफ़र रहें सुरक्षित!"
  • 2006 का थीम - "ओजोन परत को सुरक्षित रखें, पृथ्वी पर सहेजें जीवन"
  • 2007 का थीम - "20 साल की प्रगति का जश्न"
  • 2008 का थीम - "मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल - वैश्विक लाभ के लिए वैश्विक भागीदारी"
  • 2009 का थीम - "सार्वभौमिक भागीदारी: ओजोन संरक्षण विश्व को एकदम से जोड़ता है"
  • 2010 का थीम - "ओजोन परत संरक्षण: शासन और अनुपालन"
  • 2011 का थीम - "HCFC फेज़-आउट: एक अनूठा अवसर"
  • 2012 का थीम - "आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारे वातावरण की रक्षा करना"
  • 2013 का थीम - "ओजोन दिवस - एक स्वस्थ वातावरण जो हम भविष्य में चाहते हैं"
  • 2014 का थीम - "ओजोन परत संरक्षण - मिशन जारी है"
  • 2015 का थीम - "30 साल - हमारी ओजोन का एक साथ इलाज करना"
  • 2016 का थीम - "ओजोन और जलवायु - विश्व द्वारा पुनर्स्थापित" 
  • 2017 का थीम - "सूर्य के नीचे जीवन का देखभाल"
  • 2018 का थीम - "शांत रहें और लगे रहें "


निष्कर्ष 
           जिस तरह अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता वैसे ही केवल कुछ संगठनों एवं कुछ शासकीय - अशासकीय प्रयासों से हम ओजोन परत के संरक्षण का उद्देश्य पूरा नहीं कर पाएंगे।  इसके लिए हर एक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी तथा स्वयं के प्रयास जारी रखने होंगे जिससे की हमारी धरती को और इसके कवच रूपी ओजोन मंडल को सुरक्षित किया जा सके। ओजोन घटाने वाले पदार्थों का उपयोग बंद कर या फिर संबंधित कटौती के नियंत्रित उपयोगों से हम एक कदम आगे बढ़ सकते हैं। इन प्रयासों से न केवल वर्तमान अपितु भविष्य में भी ओजोन परत की रक्षा करने में मदद मिलेगी।
     अभी तक के किये प्रयासों का भी अच्छा परिणाम अब तक सामने आया है, इसने मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र को हानिकारक पराबैंगनी विकिरण को पृथ्वी तक पहुंचने से सीमित कर दिया है। हमें इस प्रयास को जोर शोर से और आगे ले जाना है। 

World First Aid Day

World First Aid Day - विश्व प्राथमिक उपचार दिवस 

                 
                    दुनिया भर में विश्व प्राथमिक चिकित्सा दिवस मनाया जाता है। यह दिन प्राथमिक चिकित्सा के सम्बन्ध में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के अवसर के रूप में मनाया जाता है। प्राथमिक चिकित्सा या फर्स्ट ऐड ऐसा उपाय है जिसकी जानकारी से बहुत सारे जीवन को समय पर ही बचाया जा सकता है। प्रति वर्ष की भांति इस साल भी फर्स्ट ऐड डे का थीम निर्धारित है, जो की सड़क के आस-पास के सुरक्षा मुद्दों को स्वीकार करते हुए दिया गया है - " प्राथमिक चिकित्सा और सड़क सुरक्षा "

                     यह प्रयास जीवन बचाने का एक बेहतरीन उदाहरण हो सकता है इसी सोच के साथ सन 2000 में इंटरनेशनल रेड क्रॉस रेड क्रिसेंट मूवमेंट द्वारा वर्ल्ड फर्स्ट ऐड या विश्व प्राथमिक उपचार दिवस पेश किया गया था।

                   लोगों में यातायात जागरूकता की कमी के कारण सड़क दुर्घटनाएं आज एक प्रमुख समस्या बनकर उभर रही है, इस तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में किसी को भी जान-माल की चिंता नहीं है यह अज्ञानता एक वैश्विक हत्यारा बन गया है। आज के आंकड़ों में यातायात दुर्घटनाओं से हर 30 सेकंड में मौत होती है। इनमे प्राथमिक उपचार न मिल पाने के कारण दुर्घटनाग्रस्त मौतों की मात्रा 50 प्रतिशत से ज्यादा होती हैं। इस समस्या से निजात पाने का सबसे कारगर उपाय है की लोगों को जागरूक किया जाये क्योंकि इस नुकसान में से अधिकांश को रोका जा सकता है। प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी सह प्रशिक्षण दुर्घटनाओं और मामूली या गंभीर चोट के मामलों में रोकथाम पर नागरिकों को शिक्षित करता है, और आपात स्थिति को हल करने के लिए कौशल देता है।

                   इस वर्ष रेड क्रॉस रेड क्रिसेंट अपने फर्स्ट ऐड कम्पैन के माध्यम से प्रत्येक ड्राइविंग लाइसेंस उम्मीदवार के लिए प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण अनिवार्य बनाने के लिए प्रावधानों की मांग कर रहा है। इसके अलावा भी नागरिक सुरक्षा हेतु व्यक्ति के जीवन के सभी चरणों में जैसे की स्कूल में, कार्यस्थल पर, समाजिक तौर पर प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण शुरू करना भी शानदार परिणाम दे सकती है। प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण निःशुल्क और पहुंच में होना चाहिए ताकि सभी इसका लाभ उठा सकें।

कब मनाया जाता है ?
   विश्व प्राथमिक उपचार या वर्ल्ड फर्स्ट एड डे सितंबर में दूसरे शनिवार को आयोजित एक वैश्विक कार्यक्रम है। जिसे सन 2000 से प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है।
दुनिया भर के लगभग 100 से अधिक रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट सोसाइटीज द्वारा सितंबर के दूसरे शनिवार को दुर्घटनाओं, घटनाओं और आपात स्थिति से निपटने के लिए सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से  प्राथमिक चिकित्सा दिवस मनाया जाता है।

2018 फर्स्ट ऐड डे थीम - " First Response to Road Crashes."

प्राथमिक चिकित्सा क्या है ?
प्राथमिक चिकित्सा- अचानक कोई दुर्घटना या आपात स्थिति उत्पन्न हो जाने की स्थिति से निपटने या क्षति को काम करने के लिए किये गए उपायों को ही प्राथमिक चिकित्सा या प्राथमिक उपचार कहा जाता है। यह एक प्रकार की सहायता है जिससे की पीड़ित व्यक्ति को त्वरित थोड़ी-बहुत राहत मिल सक।
          इस प्रयास का मुख्य लक्ष्य जीवन को संरक्षित करना और स्थिति को खराब होने से रोकना है। हर एक जगह पर हमेशा चिकित्सा कर्मी उपस्थित नहीं हो सकते अतः आम लोगों को भी प्रयास करना होता है इसलिए यह ज्ञान सबके लिए आवश्यक है।
          कभी-कभी प्राथमिक चिकित्सा के लिए किसी भी प्रशिक्षण या पूर्व ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है और व्यक्ति मामूली प्रयास से सामने वाली की जान बचा सकता है।  हालांकि इसके दुष्परिणाम भी हो सकते है क्योकि यदि प्राथमिक चिकित्सा करने वाले व्यक्ति को यह नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं, तो वे मदद करने के बजाय चोट पहुंच सकते हैं।मगर इसमें सुधार की सम्भावना शामिल को किया जा सकता है। इसी वजह से IFRC लोगों को बुनियादी प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण से गुजरने के लिए या कम से कम किसी भी विश्वसनीय स्रोत का उपयोग करके खुद को प्रशिक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करता है एवं स्वयं भी शिक्षित करता है।

विश्व प्राथमिक चिकित्सा दिवस का उद्देश्य जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्राथमिक चिकित्सा कैसे चोटों को रोक सकती है और रोजमर्रा की और संकट स्थितियों में जीवन को बचाने के साथ-साथ प्राथमिक चिकित्सा की पहुंच को बढ़ावा देने के लिए भी जान सकती है। इस दिन आयोजित घटनाक्रम और गतिविधियां प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करती हैं। हर साल, दिन के लिए एक नई वैश्विक थीम चुना जाता है, और प्रतिभागियों को वर्तमान वर्ष की थीम के अनुसार घटनाओं की योजना बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

IFRC (International Federation of Red Cross and Red Crescent Societies)  ऐसी संस्था है जो दुनियाभर में प्राथमिक चिकित्सा प्रदाताओं में से एक है। प्राथमिक चिकित्सा करना एक मानवीय कार्य है अतएव IFRC का प्रयास रहा है की प्राथमिक चिकित्सा कौशल के साथ स्वयंसेवकों और विभिन्न समुदायों को भेदभाव के बिना जीवन बचाने के लिए अधिकार दिया जाये जिससे यह सुविधा सभी को समय पर मिल सके।

               अपर्याप्त संसाधन या जानकारी के कारण समय पर सहायता की कमी हो जाती है और हर साल लाखों लोग घायल हो जाते हैं या मारे जाते हैं। पेशेवर मदद की प्रतीक्षा करने के बजाय तत्काल कार्रवाई करना और सही जानकारी के साथ उचित तकनीकों को अपनाने से दुर्घटनाओं से होने वाली क्षति को काम किया जा सकता या टाला जा सकता है। प्राथमिक चिकित्सा का होना आपातकालीन सेवाओं के लिए प्रतिस्थापन नहीं है बल्कि यह एक अतिरिक्त प्रयास है जो गंभीर चोटों को कम करने और जीवित रहने की संभावनाओं को बेहतर बनाने में मदद करता है।

                प्राथमिक उपचार का ज्ञान होना युद्ध-ग्रस्त या आपदा प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए बहुत ज्यादा हितकर है। ऐसे क्षेत्रों में इस प्रकार की जानकारी होना ही चाहिए। 

Friday, September 14, 2018

Engineer's Day

Indian Engineer's Day



सभी विकासशील देशों में, भारत हल्के और भारी इंजीनियरिंग सामानों के प्रमुख निर्यातकों में से एक है। भारत वस्तुओं की एक विस्तृत श्रृंखला का उत्पादन करता है। ये तभी संभव हो सका जब हमारे इंजीनियर्स ने देश की  तन-मन से सेवा की। भारत में विविधतापूर्ण और अच्छी तरह से विकसित एक मजबूत औद्योगिक मशीनरी उपलब्ध है। तथा इस औद्योगिक मशीनरी की पूरी श्रृंखला के निर्माण करने के लिए पूंजी आधार प्रारम्भ से ही पर्याप्त सक्षम है।
हमारा देश खनन उपकरण, इस्पात और पेट्रोकेमिकल संयंत्रों, सीमेंट, बिजली परियोजनाओं के लिए जरूरी पूंजीगत सामानों, निर्माण मशीनरी, डीजल इंजन, परिवहन वाहन,  कपास वस्त्र और चीनी मिल मशीनरी, उर्वरक,  सिंचाई परियोजनाओं,  कृषि उपकरण, ट्रैक्टर इत्यादि के निर्माण और उपकरणों के निर्माण व उत्पादन में सक्षम हैं और इन सबका थोक उत्पादन भारत में किया जाता है।  परन्तु बिना यन्त्रकीय ज्ञान के यह सभी संसाधन बेकार हो जाते, मगर हमारे यंत्रियों ने अपने पूर्ण सामर्थ्य के साथ उद्योग को उन्नत और विकसित तकनीक देने के लिए वर्षों से कड़ी मेहनत की है। इस प्रकार, विकासशील भारत में इंजीनियरों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है।
इंजीनियरों(यंत्री) वे विशेषज्ञ हैं जो कच्चे माल और कार्य की प्रक्रिया का विन्यास, निर्माण और परीक्षण करते हैं, जिससे सुरक्षा और उद्यम की लागत से मजबूत विकास का आगाज़ किया जा सके। वे हमारे जीवन के हर के उद्यम और पराक्रम को सरल एवं सहज बनाने के लिए मौलिक विज्ञान जानकारी को वास्तविक वस्तुओं में बदलते हैं। भारत में इंजीनियर देश के अभिनव और औद्योगिक विकास के लिए असाधारण योगदान करते हैं।

भारत भर में इंजीनियरिंग समुदाय महानतम भारतीय अभियंता भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरा को श्रद्धांजलि के रूप में हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर्स दिवस मनाता है।
इंजीनियर्स दिवस 2018
वर्ष 2018 भारत में इंजीनियर्स दिवस की 50 वीं वर्षगांठ और सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय की 157 वीं जयंती को चिह्नित करेगा। यह 15 सितंबर, शनिवार को मनाया जाएगा।


कब मनाया जाता है ?
           भारत के महानतम इंजीनियर स्व. श्री सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरया के अद्वितीय कार्य के लिए उनको श्रद्धांजलि स्वरुप उनके जन्मदिन 15 सितम्बर को भारतीय यंत्री दिवस या Engineer's Day के रूप में मनाया जाता है। 
            15 सितंबर, शनिवार 2018 को भारत में इंजीनियर्स दिवस की 50 वीं वर्षगांठ और सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरया की 157 वीं जयंती मनायी जाएगी।

क्यों मनाया जाता है ?
            प्रत्येक देश की प्रगति उसके सपूतों के प्रयास से ही संभव होता है, ऐसा ही प्रयास हमारे इंजीनियर भी दिन रात करते हैं। विकास का प्रत्येक चिन्ह चाहे सड़कें, पूल, बांध, कारखानें, विद्युत् संयंत्र, अंतरिक्ष कार्यक्रम, कृषि तथा उद्योग उपकरण, परिवहन, संचार माध्यम इत्यादि के सही रख-रखाव, उपयोग और सुधार के साथ नए खोज का कार्य हमारे इंजीनियरों के मजबूत कंधों पर हैं। उनके उत्साहवर्धन तथा कुछ और बेहतर करने की प्रेरणा हेतु यह दिवस मनाया जाता है।
            इसके अलावा इंजीनियर्स दिवस को विभिन्न स्थानों के विकास के लिए सर एमवी के महान कार्यों के याद में भी मनाया जाता है ताकि उनके किये गए प्रयासों से आनेवाली पीढ़ी कुछ सिख सके। सर एमवी एक अंतरराष्ट्रीय नायक है, जो जल संसाधनों का उपयोग करने में अपने मास्टरमाइंड के लिए जगत प्रसिद्ध हैं।उन्होंने सफलतापूर्वक कई नदी बांधों, पुलों का निर्माण और निर्माण किया था और पूरे भारत में सिंचाई और पेयजल प्रणाली को लागू करके भारत में सिंचाई प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव किया था।

अभियंता दिवस इतिहास
                           भारत में हर साल कंप्यूटर विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक्स, सिविल, इलेक्ट्रिकल, तकनीकी, मैकेनिकल इत्यादि जैसे इंजीनियरिंग की शाखाओं से लगभग 20 लाख इंजीनियर प्रत्येक वर्ष निकलते हैं। इनमे से एक सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया अब तक सबसे महानतम इंजीनियरों में से एक रहे, वे एक महान शिक्षाविद, स्टेट्समैन, एक विद्वान और वास्तव में सबसे मने हुए इंजीनियर थे। इन्हें लोग प्यार से सर एमवी कहकर बुलाते थे। इस प्रकार, इंजीनियरों का दिन सर एमवी की उपलब्धियों को श्रद्धांजलि के रूप में चिह्नित करते हुए मनाया जाता है।

सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरया कौन हैं ?

                    सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरा का जन्म 15 सितंबर 1861 को कर्नाटक के कोलार जिले के मधेदाहल्ली गांव में श्रीनिवास शास्त्री और मां वेंकटचम्मा के यहाँ हुआ था। 15 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया और अपनी मां के साथ बैंगलोर चले गए जहां उनके मामा एच राम्याह रहते थे। उन्हें 1875 में वेस्लेयन मिशन हाई स्कूल में भर्ती कराया गया, जहाँ अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने क्रमशः 1881 और 1883 में पुणे कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में सिविल इंजीनियरिंग पूरा किया। उन्होंने वर्तमान दिनों की बीई परीक्षा के बराबर एलसीई और एफसीई परीक्षाओं में पहली रैंक हासिल की थी। वहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद वे भारत के सबसे प्रभावशाली सिविल इंजीनियर बन गए। उन्हें बांध निर्माता, अर्थशास्त्री, राजनेता, और पिछली शताब्दी के सबसे प्रमुख व्यक्तित्वों में गिना जाता है।
बाद में वे मैसूर (कर्नाटक) राज्य के दीवान बनाए गए और निरंतर समाज सेवा में लग गए। उनकी मृत्यु सन 1962 हुई।

सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरया की उपलब्धियां
                   प्रारम्भ में उन्होंने 1884 में मुंबई में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के साथ एक सहायक अभियंता के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन शुरू किया जहां उन्होंने सार्वजनिक भवनों, सड़क निर्माण के रखरखाव और कई महत्वपूर्ण विकास की योजनाओं को पूरा करने से संबंधित कई परियोजनाएं पूरी की। बाद में उन्हें भारतीय सिंचाई आयोग में शामिल होने का अनुरोध किया गया।
उन्होंने पूर्ण समर्पण और दृढ़ता के साथ काम किया और 1909 में मैसूर राज्य के मुख्य अभियंता के रूप में पदोन्नत किये गए। उन्होंने भद्रावती आयरन वर्क्स के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया और बाद में पूछताछ समिति, लंदन के सदस्य बने। वह भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर, मैसूर राज्य के दीवान की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य भी थे, मैसूर राज्य में शिक्षा और औद्योगिक विकास समितियों के अध्यक्ष और टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य (टिस्को ) भी बने।
उनका सबसे उल्लेखनीय कार्य था सिंचाई की ब्लॉक प्रणाली। सर एमवी द्वारा पूरा किया जाने वाला एक और उल्लेखनीय कार्य था 1903 में स्वचालित रूप वाइर वाटर बाढ़द्वार की व्यवस्था।  यह व्यवस्था पुणे के पास खडकवासला जलाशय में स्थापित थी, जिसे डिजाइन और पेटेंट किया गया था। इन द्वारों का इस्तेमाल पहली बार पुणे के मुट्टा नहर की बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए किया गया था। इसी तरह के द्वार बाद में मैसूर में कृष्णासागर बांध, ग्वालियर में टिग्रा बांध और अन्य बड़े भंडारण बांधों में उपयोग किए गए थे।
             बाद में 1909 में, सर एमवी मैसूर सेवाओं के मुख्य अभियंता के रूप में शामिल हो गए और मुख्य अभियंता के रूप में लगातार तीन वर्षों तक वहां सेवा करने के बाद, उन्हें तत्कालीन शासक कृष्णराजेंद्र वोडेयार द्वारा मैसूर के दीवान के रूप में नियुक्त किया गया और सर एमवी ने छह साल तक दीवान के रूप में कार्य किया।
          उन्होंने मुंबई में कई बांध भी बनाए, जिनमें से कुछ आज तक कार्यात्मक हैं। वह कावेरी नदी पर कृष्णा सागर बांध के निर्माण के दौरान मुख्य अभियंता थे। उन्होंने भद्रावती लौह और इस्पात कार्यों के प्रसार में एक उल्लेखनीय भूमिका निभाई, मैसूर सैंडलवुड ऑयल फैक्ट्री की स्थापना की और बैंक ऑफ मैसूर की स्थापना में योगदान दिया। सबसे प्रशंसनीय बांधों में से एक कर्नाटक में कृष्णराजसागर बांध भी बनाया। सर एमवी भी प्रतिष्ठित मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया था। बंगलौर के प्रसिद्ध श्री जयचामराजा पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट सर एमवी की सिफारिश पर बनाया गया था।
आर्थिक योजना में भारत के प्रयासों का वर्णन करने के लिए उनकी रचना  "भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था और पुनर्निर्माण भारत" अपनी तरह का पहला तरीका है।

भारत रत्न
उनके महान योगदान के लिए  1955 में भारत का सर्वोच्च सम्मान और सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार 'भारत रत्न' दिया गया। किंग जॉर्ज पंचम ने उन्हें जनता के लाभ में उनके असंख्य योगदान के लिए  नाइट की उपाधि भी प्रदान की थी।

सर एमवी के बारे में आपको 5 चीजें जाननी चाहिए:

1. पूना कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के बाद वह सीधे बॉम्बे सरकार द्वारा लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता नियुक्त किए गए थे।   (बिना किसी साक्षात्कार के)
2. उन्होंने स्वचालित स्लूस गेट्स बनाए जिन्हें बाद में टिग्रा बांध (मध्य प्रदेश में) और केआरएस बांध (कर्नाटक में) के लिए उपयोग किया गया। इस पेटेंट डिजाइन के लिए उन्हें रॉयल्टी के रूप में आय प्राप्त करना था, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया ताकि सरकार इस विकास योजना का उपयोग अधिक से अधिक विकास परियोजनाओं में कर सके।
3. 1895 और 1905 के बीच, उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों में काम किया:
- हैदराबाद में, उन्होंने जल निकासी व्यवस्था में सुधार किया।
- बॉम्बे में, उन्होंने सिंचाई और पानी के लिए बाढ़ द्वार की ब्लॉक प्रणाली शुरू की।
- बिहार और उड़ीसा में, वह रेलवे पुल परियोजना और जल आपूर्ति योजनाओं के निर्माण का हिस्सा थे।
- मैसूर में, उन्होंने एशिया के सबसे बड़े बांध - केआरएस बांध के निर्माण की निगरानी की।

4. उन्हें 1908 में मैसूर के दीनशिप (प्रधान मंत्री पद) की पेशकश की गई और सभी विकास परियोजनाओं की पूरी ज़िम्मेदारी दी गई। उनके दिशानिर्देश में मैसूर ने कृषि, सिंचाई, औद्योगिकीकरण, शिक्षा, बैंकिंग और वाणिज्य के क्षेत्र में बड़े बदलाव का साक्षी बना।
5. उन्हें इंजीनियरिंग के प्रति उनके योगदान के लिए 1955 में भारत रत्न भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

उनकी न केवल भारत सरकार द्वारा प्रशंसा की गई बल्कि उन्हें दुनिया भर से मानद पुरस्कार और सदस्यता भी मिली। हमारे देश की मदद और पुनर्निर्माण करने के लिए सभी इंजीनियरों के लिए हैप्पी इंजीनियर दिवस।


अभियंता दिवस  थीम  


  • 2009  - “Green is the theme for this year.”
  • 2010 - “Impending Paradigm Shift in Engineering Sciences and Future Challenges”.
  • 2011 - “Engineering Preparedness for Disaster Mitigation”.
  • 2012 - " Engineering Preparedness for Disaster Mitigation."
  • 2013 - ‘Frugal Engineering-Achieving More with Fewer Resources”.
  • 2014 - “Making Indian Engineering World-Class”.
  • 2015 - “Engineering Challenges for Knowledge Era”.
  • 2016 - “Skill Development for Young Engineers to Reform the Core Sector: Vision 2025”.
  • 2017 - “Role of Engineers in a devolping India”.
  • 2018 - “Engineering Challenges for Knowledge Era”

Thursday, September 13, 2018

Hindi Diwas or Hindi Day - हिंदी दिवस

 Hindi Day or Hindi Diwas - हिंदी दिवस 

        भारत में राष्ट्रीय हिंदी दिवस हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन हिंदी को भारत के मातृभाषा और राजभाषा के रूप में बढ़ावा देने और लोगों के बीच हिंदी भाषा को और समृद्ध कर इसकी सांस्कृतिक विरासत और मूल्यों का प्रचार करने के लिए मनाया जाता है। पूरे देश में लोग साहित्यिक आयोजन करते हैं जिसमे हिंदी कविता सत्र, हिंदी निबंध लेखन, हिंदी भाषण प्रतियोगिताओं और अन्य हिंदी साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। ऐसे आयोजन विशेषकर शालाओं महाविद्यालयों में आयोजित आवश्यक रूप से किये जाते हैं, क्योकि हमारे भविष्य का निर्माण वहीँ होता है। 

कब मनाया जाता है ?
           सन 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।
14 सितम्बर को ही चुने जाने का प्रमुख कारण था की 14 सितंबर,1949 के दिन हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था।

हिंदी दिवस का इतिहास 
  • वर्ष 1918 में गांधी जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था। इसे गांधी जी ने जनमानस की भाषा बताया था।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारी प्रसाद द्धिवेदी, सेठ गोविन्ददास और राजेन्द्र सिंह आदि लोगों ने बहुत से प्रयास किए। जिसके चलते इन्होंने दक्षिण भारत की कई यात्राएँ भी की।
  • वर्ष 1949 में स्वतंत्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर 14 सितम्बर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा ३४३(१) में इस प्रकार वर्णित है :- संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप में होगा।
  • उपरोक्त निर्णय 14 सितम्बर 1949 को लिया गया था, इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया। परन्तु तत्कालीन परिवेश में जब हिंदी को राजभाषा के रूप में चुना गया और लागू किया गया तो गैर-हिन्दी भाषी राज्य के लोगों ने इसका विरोध किया था और इसी कारण हिंदी के साथ अंग्रेज़ी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा।
  • भारत की राजभाषा नीति (1950 से 1965) ;- 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने के साथ साथ राजभाषा नीति भी लागू हुई। अनुच्छेद 343 (2) के अंतर्गत यह भी व्यवस्था की गई है कि संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक, अर्थात वर्ष 1965 तक संघ के सभी सरकारी कार्यों के लिए पहले की भांति अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग होता रहेगा। यह व्यवस्था इसलिए की गई थी कि इस बीच हिन्दी न जानने वाले हिन्दी सीख जायेंगे और हिन्दी भाषा को प्रशासनिक कार्यों के लिए सभी प्रकार से सक्षम बनाया जा सकेगा।
  • अनुच्छेद 344 में यह कहा गया कि संविधान प्रारंभ होने के 5 वर्षों के बाद और फिर उसके 10 वर्ष बाद राष्ट्रपति एक आयोग बनाएँगे इस अनुच्छेद के खंड 4 के अनुसार 30 संसद सदस्यों की एक समिति के गठन की भी व्यवस्था की गई, जो अन्य बातों के साथ साथ संघ के सरकारी कामकाज में हिन्दी भाषा के उत्तरोत्तर प्रयोग के बारे में और संघ के राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए अंग्रेज़ी भाषा के प्रयोग पर रोक लगाए जाने के बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश करेगा। 
  • अनुच्छेद 120 में कहा गया है कि संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है।
  • वर्ष 1965 तक 15 वर्ष पुरे हो जाने के बावजूद अंग्रेजी को हटाया नहीं गया और अनुच्छेद 334 (3) में संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह 1965 के बाद भी सरकारी कामकाज में अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी रखने के बारे में व्यवस्था कर सकती है। अतएव आज तक अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भारत की राजभाषा है।
  • अंग्रेज़ी का विरोध (1965 से 1967) :- 26 जनवरी 1965 को संसद में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि "हिन्दी का सभी सरकारी कार्यों में उपयोग किया जाएगा, लेकिन उसके साथ साथ अंग्रेज़ी का भी सह राजभाषा के रूप में उपयोग किया जाएगा।" वर्ष 1967 में संसद में "भाषा संशोधन विधेयक" लाया गया। इसके बाद अंग्रेज़ी को अनिवार्य कर दिया गया। इस विधेयक में धारा 3(1) में हिन्दी की चर्चा तक नहीं की गई। इसके बाद अंग्रेज़ी का विरोध शुरू हुआ।

क्यों मनाया जाता है ?
कारण

  1. हिंदी दुनिया में बोली जाने वाली चौथी सबसे बड़ी भाषा है। लेकिन हिंदी को अच्छी तरह से समझने, पढ़ने और लिखने वालों की संख्या बहुत ही कम है जो की और भी कम होती जा रही। इसके साथ ही हिन्दी भाषा पर अंग्रेजी के शब्दों का भी बहुत अधिक प्रभाव हुआ है और कई शब्द प्रचलन से हट गए और अंग्रेज़ी के शब्दों ने उनकी जगह ले ली है, वर्तमान में हिंदी का स्वरुप हिंगलिश (Hinglish) जैसा हो गया है। इससे हिंदी ने अपना वास्तविक रूप खो दिया है तथा यह डर भी बढ़ गया है की भविष्य में भाषा विलुप्त हो सकती है।हिंदी को उसके स्वरुप में बने रहने तथा विलुप्ति से बचने के लिए ऐसे लोग जो हिन्दी का ज्ञान रखते हैं या हिन्दी भाषा जानते हैं, उन्हें हिन्दी के प्रति अपने कर्तव्य का बोध करवाने के लिए इस दिन को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। 
  2. इसका मुख्य उद्देश्य वर्ष में एक दिन इस बात से लोगों को रूबरू कराना है कि इस एक दिन सभी सरकारी कार्यालयों में अंग्रेज़ी के स्थान पर हिन्दी का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। जब तक सभी लोग हिन्दी का उपयोग नहीं करेंगे तब तक हिन्दी भाषा का विकास संभव नहीं हो सकता।  
  3. हिन्दी भाषा में लिखने हेतु बहुत कम उपकरण के बारे में ही लोगों को पता है, इस कारण इस दिन हिन्दी भाषा में लिखने, जाँच करने और शब्दकोश के बारे में जानकारी दी जाती है।
  4. देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि इस दिन के महत्व देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाए। ज्ञातव्य हो की पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया था। 
  5. 14 सितंबर 1 9 4 9 को, हिंदी भाषा को भारत की संविधान सभा के रूप में देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया था।
कैसे मनाया जाता है ?
               हिन्दी दिवस के दौरान कई कार्यक्रम रखे जाते हैं। इस दिन विद्यार्थियों एवं जनसमुदाय  को हिन्दी के प्रति सम्मान और दैनिक व्यवहार में हिन्दी के उपयोग करने आदि की सलाह के साथ मार्गदर्शन दिया जाता है। 

  • इन कार्यक्रमों में हिन्दी निबंध लेखन, वाद-विवाद, हिन्दी टंकण प्रतियोगिता, विचार गोष्ठी, काव्य गोष्ठी, श्रुतलेखन, कवि सम्मलेन, कहानी-नाटक का मंचन, प्रोत्साहन-पुरुष्कार समारोह आदि का आयोजन होता है। 
  • हिन्दी दिवस पर हिन्दी के प्रति लोगों को प्रेरित करने हेतु भाषा सम्मान की शुरुआत की गई है। यह सम्मान प्रतिवर्ष देश के ऐसे व्यक्तित्व को दिया जाएगा जिसने जन-जन में हिन्दी भाषा के प्रयोग एवं उत्थान के लिए विशेष योगदान दिया है। इसके लिए सम्मान स्वरूप एक लाख एक हजार रुपये दिये जाते हैं।
  • राजभाषा सप्ताह का आयोजन :- राजभाषा सप्ताह या हिन्दी सप्ताह 14 सितम्बर से एक सप्ताह के लिए मनाया जाता है। इस पूरे सप्ताह अलग अलग प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन विद्यालयों, महाविद्यालयों और कार्यालयों दोनों में किया जा सकता है। इसका मूल उद्देश्य हिन्दी भाषा के लिए विकास की भावना को लोगों में केवल हिन्दी दिवस तक ही सीमित न कर उसे और अधिक बढ़ाना है। इन सात दिनों में लोगों को हिन्दी भाषा के विकास और उसके उपयोग, लाभ और हानि बारे में समझाया जाता है।
  • पुरस्कार :- हिन्दी दिवस पर हिन्दी के प्रति लोगों को उत्साहित करने हेतु पुरस्कार समारोह भी आयोजित किया जा सकता या किया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों में अच्छी हिन्दी का उपयोग व इसका विकास करने वालों को पुरस्कार दिया जाता है। यह पहले राजनेताओं के नाम पर था, जिसे बाद में बदल कर राजभाषा कीर्ति पुरस्कार और राजभाषा गौरव पुरस्कार कर दिया गया। राजभाषा गौरव पुरस्कार लोगों को दिया जाता है जबकि राजभाषा कीर्ति पुरस्कार किसी विभाग, समिति आदि को दिया जाता है।
  • राजभाषा गौरव पुरस्कार :- यह पुरस्कार तकनीकी या विज्ञान के विषय पर लिखने वाले किसी भी भारतीय नागरिक को दिया जाता है। इसमें दस हजार से लेकर दो लाख रुपये के 13 पुरस्कार होते हैं। इसमें प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने वाले को २ लाख रूपए, द्वितीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले को डेढ़ लाख रूपए और तृतीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले को पचहत्तर हजार रुपये दिया जाता है। इसके अलावा दस लोगों को प्रोत्साहन पुरस्कार के रूप में दस-दस हजार रूपए प्रदान किए जाते हैं।पुरस्कार प्राप्त सभी लोगों को स्मृति चिह्न भी दिया जाता है। इसका मूल उद्देश्य तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में हिन्दी भाषा के प्रयोग को आगे बढ़ाना है।
  • राजभाषा कीर्ति पुरस्कार :- इस पुरस्कार योजना के तहत कुल 39 पुरस्कार दिये जाते हैं। यह पुरस्कार किसी समिति, विभाग, मण्डल आदि को उसके द्वारा हिन्दी में किए गए श्रेष्ठ कार्यों के लिए दिया जाता है। इसका मूल उद्देश्य सरकारी कार्यों में हिन्दी भाषा का उपयोग को प्रोत्साहित करने से है।

हिंदी के प्रति हमारा दायित्व
           जिस तरह भारत माता की रक्षा और विकास हम सबका कर्त्तव्य है वैसे ही हिंदी हमारी मातृभाषा व राजभाषा है, इसके लिए भी हमारा दायित्व बनता है की हम हिंदी भाषा के विकास में सहयोग प्रदान करें। कम से कम अपने दैनिक जीवन में हिंदी भाषा का पूरा प्रयोग करें तथा अपने आसपास के लोगों को प्रोत्साहित करें की वे सब भी हिंदी या हिंदी आश्रित भाषा का प्रयोग करें। हम यह भी प्रयास कर सकते हैं की सोशल नेटवर्क में हिंदी प्लेटफार्म का उपयोग करें।  

निष्कर्ष 
   निश्चय ही जनमानस की भाषा हैं हिंदी, मगर इसमें अब शुद्धता नहीं रही। यह गौरवशाली भाषा अपने दुर्दिन से गुजर रही है और हम सबको चाहिए के कम से कम हमारी मातृभाषा को अपने घर में पूरा -पूरा इज़्ज़त मिले।
वर्तमान में हिन्दी दिवस सरकारी कार्य की तरह हो गया है जिसके लिए बातें तो बड़ी-बड़ी जोति हैं, बाकि 14 सितम्बर गुजर जाने के बाद वे बातें सिर्फ कागज़ी घोड़े बनकर रह जाते हैं। इससे हिन्दी भाषा का कोई भी विकास नहीं होता है, बल्कि इससे हिन्दी भाषा को सिर्फ हानि होती है। बड़ी विडंबना है की हिन्दी दिवस समारोह में भी अंग्रेजी भाषा में लिख कर लोगों का स्वागत किया जाता हैं। सरकार इसे दिखावे के लिए चला रही है वास्तव में इतना प्रयास हिंदी विकास के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके लिए सरकार और जनता दोनों को कदम मिलाकर चलना होगा और खानापूर्ति के प्रयासों से बचना होगा।
कुछ बातें वास्तव में सोचने पर मज़बूर करती हैं की हिन्दी तो अपने घर में ही दासी के समान हो गयी है। इतने वर्षों के प्रयासों के बावजूद हिन्दी को आज तक संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बनाया जा सका है। यह हिंदी की विडंबना ही है कि योग को संयुक्त राष्ट्र संघ में 177 देशों का समर्थन मिला, जबकि हिन्दी के लिए 129 देशों का समर्थन नहीं जुटाया जा सका। हिंदी के हालात वर्तमान में ऐसे आ गए हैं कि हिन्दी दिवस के दिन भी कई लोगों को ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम आदि जैसे सामाजिक मंच पर हिन्दी में बोलने के लिए प्रेरित किया जा रहा। 

यह भी देखने को मिलता है की हिन्दी में निबंध लेखन प्रतियोगिता के द्वारा कई जगह पर हिन्दी भाषा के विकास और विस्तार हेतु सुझाव स्वीकार किए जाते हैं और सुधार का वादा भी किया जाता है, लेकिन अगले दिन सभी हिन्दी भाषा को फिर से अगले हिंदी दिवस आने तक भूल जाते हैं।
हिन्दी भाषा को 1 दिन से ज्यादा कुछ और दिन याद रखा जायेगा करके राजभाषा सप्ताह का भी आयोजन होता है। जिससे यह कम से कम वर्ष में एक सप्ताह के लिए तो समाज में सम्मान पाती है मगर समारोह निपट जाने के बाद स्थिति वहीँ "ढांक के तीन पात" बनी रहती है।

Wednesday, September 12, 2018

Suicide Prevention Day - Country and SEX wise Analysis

Suicide Prevention Analysis


प्रति वर्ष अनुमानित दस लाख लोग आत्महत्या से मर जाते हैं या 10,000 में से एक व्यक्ति (सभी मौतों का 1.4%), या "हर 40 सेकंड में मृत्यु या लगभग 3,000 हर दिन मृत्यु"। 2004 तक आत्महत्या से मरने वाले लोगों की संख्या 2020 तक प्रति वर्ष 1.5 मिलियन तक पहुंचने की आशंका है।
       विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (WSPD) 2003 से दुनिया भर में विभिन्न गतिविधियों के साथ आत्महत्या रोकने के लिए विश्वव्यापी प्रतिबद्धता और कार्रवाई प्रदान करने के लिए हर साल 10 सितंबर को एक जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। कुछ वैश्विक रिपोर्ट निम्न हैं-
  • ऑस्ट्रेलिया में प्रत्येक वर्ष 2800 से अधिक लोग मरते हैं, नवीनतम आंकड़े (2016) हमें बताते हैं कि 2,866 ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने अपना जीवन स्वयं समाप्त कर लिया। हालिया शोध से हमें पता चलता है कि प्रत्येक 1 सफल आत्महत्या के पीछे 90 असफल आत्महत्या होते हैं और ये असफल लोग फिर से प्रयास करने से नहीं चूकते। 
  • 2011 में अनुमानित 40 देशों ने इस अवसर को चिह्नित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए थे जो की अब 60 से ज्यादा देशों में चलाये जा रहे हैं। 
  • विकसित देशों में तीन गुना पुरुष महिलाओं की तुलना में ज्यादा आत्महत्या कर लेते हैं, लेकिन अविकसित और विकासशील देशों में पुरुष-महिला से-मादा अनुपात 1.5:1 है, जो की विकासशील देशों से बहुत कम है। 
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में आत्महत्या की स्थिति महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में चार गुना होती हैं। हालांकि, महिलाओं में पुरुषों की तुलना में आत्महत्या करने की अधिक संभावना होती हैं। 
  • आत्महत्या के दरों में असमानता को प्रभावी तरीकों से समझने का प्रयास किया गया है ताकि हमें आत्मघाती समस्याओं से निपटने का रास्ता समझ आये इसके लिए साधनों, आक्रामकता और उच्च इरादे के अनुभव को आंशिक रूप से समझा जा सकता है।


देश आधारित जानकारी
Suicide rates (per 100,000) in 2015 (विकिपीडिया से साभार )
CountryCrude
rate
Age-adjusted
      rate[note 1]
Male:Female
ratio
Sri Lanka35.334.64.4 : 1
Lithuania32.726.15.8 : 1
Republic of Korea32.024.12.7 : 1
Guyana29.030.63.0 : 1
Mongolia28.328.15.2 : 1
Kazakhstan27.527.55.0 : 1
Suriname26.626.93.3 : 1
Belarus22.819.16.5 : 1
Poland22.318.56.7 : 1
Latvia21.717.46.6 : 1
Hungary21.615.73.7 : 1
Slovenia21.415.04.1 : 1
Angola20.525.92.7 : 1
Belgium20.516.12.6 : 1
Russia20.117.95.7 : 1
Ukraine20.116.64.6 : 1
World10.710.71.7 : 1
मुख्य लेख: आत्महत्या दर से देशों की सूची

Estimated numbers and rates of suicide by income group, 2012 (विकिपीडिया )
Income group (% of global pop)Suicides
(in thousands)
Global %RateMale:Female
High-income  (18.3%)19724.5%12.73.5 : 1
Upper-middle-income  (34.3%)19223.8%7.51.3 : 1
Lower-middle-income  (35.4%)33341.4%14.11.7 : 1
Low-income  (12.0%)8210.2%13.41.7 : 1
Global  (100.0%)804100.0%11.41.9 : 1
  • 1999 में, आत्महत्या से होने वाली मृत्यु दुनिया में 15-44 आयु वर्ग की मौत का चौथा प्रमुख कारण था। 2002 के एक अध्ययन में यह बताया गया है कि सबसे कम आत्महत्या दर लैटिन अमेरिका, कुछ मुस्लिम देशों और कुछ एशियाई देशों में हैं। 1978-2008 के दौरान आत्महत्या दरों में कई अफ्रीकी देशों की जानकारी की कमी दिखाई देती है, जो की चिंता का विषय है। आंकड़ों की गुणवत्ता आत्महत्या रोकथाम नीतियों की चिंता का विषय है। आत्महत्या की घटनाओं को सांस्कृतिक और सामाजिक दबाव दोनों के कारण अंडर-रिपोर्ट और गलत वर्गीकृत किया जाता है, और संभवतः कुछ क्षेत्रों में पूरी तरह से रिपोर्ट भी नहीं किया जाता है। चूंकि आंकड़ों को कम किया जा सकता है, इसलिए राष्ट्रों के बीच आत्महत्या दरों की तुलना में विभिन्न देशों में आत्मघाती व्यवहार के बारे में सांख्यिकीय रूप से अचूक निष्कर्ष निकल सकते हैं। फिर भी आंकड़े आम तौर पर सार्वजनिक नीति और सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों के फैसलों को सीधे प्रभावित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
  • दक्षिण कोरिया जो की OECD (34 सदस्य देश जो की ज्यादातर उच्च आय वाले देशों का एक समूह जो मानव विकास सूचकांक में सुधार के लिए बाजार अर्थव्यवस्था का उपयोग करता है।) का एक सदस्य है में 2009 में सबसे ज्यादा आत्महत्या दर थी। आत्महत्या के उच्च दर को काम करने के लिए WSPD के साथ 2011 में दक्षिण कोरिया के स्वास्थ्य और कल्याण मंत्रालय ने कानून बना दिया।
  • 2008 में यह बताया गया था कि चीन में 15-34 वर्ष की उम्र के युवाओं में आत्महत्या का विशेष कारण था -'शादी के बारे में ताना देना' इससे ग्रामीण इलाकों में युवा बहुत प्रभावित थे जो की किसी अन्य कारणों से होने वाली आत्महत्या के दर से अधिक थे, विशेष रूप से युवा चीनी महिलाएं। हालांकि 2011 तक, उसी आयु वर्ग के लिए आत्महत्या दर में कमी आई थी, जिसका मुख्य कारक था शहरीकरण और ग्रामीण क्षेत्रों से प्रवासन। शहरीकरण के कारण: 1990 के दशक से, कुल राष्ट्रीय चीनी आत्महत्या दर 68% गिर गई।
  • WHO के अनुसार, 2009 में आत्महत्या की उच्चतम दर वाले चार देश पूर्वी यूरोप में थे:- रूस, लातविया, बेलारूस और स्लोवेनिया। यहाँ 2003 में डब्लूएसपीडी कार्यक्रम की शुरुआत से उच्चतम दरें प्राप्त हुई है। 
  • 2015 तक पूर्वी यूरोप, कोरिया और चीन के किनारे साइबेरियाई क्षेत्र, श्रीलंका और गियानस, बेल्जियम और कुछ उप-सहारन देशों में सबसे ज्यादा आत्महत्या दरें अभी भी हैं।
  • WSPD का फोकस आत्महत्या की मौलिक समस्या है। इसमें स्वास्थ्य समस्या को उच्च आय वाले देशों में एक प्रमुख कारण है मन जाता है जबकि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में उभरती हुई समस्या बना हुआ है। 
  • 2015 तक उच्च आय वाले देशों (दक्षिण कोरिया के अलावा) में उच्चतम आत्महत्या दर पाए गए जिसमे प्रमुख हैं - कुछ पूर्वी यूरोपीय देश, बेल्जियम और फ्रांस, जापान, क्रोएशिया और ऑस्ट्रिया, उरुग्वे और फिनलैंड। 


सामाजिक आर्थिक स्थिति
आर्थिक स्थिति आत्मघाती व्यवहार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो की पुरुष-महिला आत्महत्या दर अनुपात के संबंध में स्थिर है तात्पर्य है की धन आत्महत्या के लिए पुरुष एवं महिला दोनों में सामान रूप से प्रभावी रहा है। 
                           आर्थिक परिपूर्णता भी कभी-कभी आत्महत्या की वजह हो सकता है। क्योकि विकसित या उच्च आय वाले देश भी इससे निरंतर प्रभावित रहें हैं। 

आत्महत्या का व्यवहार 
आत्महत्या का व्यव्हार 1970 के दशक से अर्थशास्त्री के लिए अध्ययन का विषय है। आत्महत्या मानसिक तनाव, ब्याज की कमी, ऋण का होना, दुर्लभ संसाधनों की कमी, वकील और नेताओं का दबाव, पारिवारिक कलह, सामाजिक बंधन आदि से उपजती है। अक्सर "आत्महत्या करने वाले व्यक्ति केवल जीवन और मृत्यु के बीच ही चुनाव नहीं करते अमूमन उनके पास और भी रास्ते और तर्क होते हैं, और जहाँ जिस फैसले में ज्यादा आसानी महसूस होता है, इंसान वही रास्ता अपनाता है परिणामस्वरूप आत्महत्या के दर में कुछ हद तक विरोधाभासी निष्कर्ष भी प्राप्त होता है। आत्महत्या का प्रयास एक तर्कसंगत विकल्प हो सकती है, लेकिन केवल अगर उच्च संभावना है तभी। 
कई बार पुरे वैश्विक परिदृश्य में हमने देखा है की आत्महत्या सिर्फ खुद को मारने के लिए ही नहीं होता बल्कि इससे सामाजिक, आर्थिक और मानविक नुकसान करना भी एक कारक होता है जो की आतंकवाद का स्वरुप है और ऐसे आत्महत्या प्रयास को आत्मघाती हमला कहा जाता है। हालांकि ऐसे आत्महत्या और आत्महत्या के प्रयासों की राष्ट्रीय लागत बहुत अधिक हैं। अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में, ऐसे प्रयासों की वार्षिक लागत 50-100 बिलियन डॉलर है। 
संयुक्त राष्ट्र ने 1990 के दशक में 'आत्महत्या रोकथाम की राष्ट्रीय नीति' जारी की, जिसे कुछ देश अपनी सहायक आत्महत्या नीतियों के आधार के रूप में भी उपयोग करते हैं, फिर भी संयुक्त राष्ट्र ने नोट किया कि आत्मघाती हमलावरों की मौत अन्य लोगों या विशिष्ट लक्ष्यों को मारने के अपने लक्ष्य के लिए माध्यम के रूप में देखी जाती है। और इस वजह से बमवर्षक अन्य आत्महत्या करने वाले लोगों के समान नहीं हैं।

लिंग और आत्महत्या


पुरुष और महिला आत्महत्या दरों में पुरुषों का दर ज्यादा है जो की एक विरोधाभाष है। मतलब पुरुष आत्महत्याओं का उच्च प्रसार है। 

  

Male:Female ratios of suicide rates. Green means higher prevalence of male suicides. Below are the male and female standardised suicide rates used to derive the ratios.



यूरोपीय और अमेरिकी समाज किसी अन्य समाजों की तुलना में पुरुष आत्महत्या के उच्च मृत्यु दर की रिपोर्ट करते हैं, जबकि विभिन्न एशियाई में यह दर बहुत कम हैं। WHO द्वारा प्रदान किए गए हालिया आंकड़ों के मुताबिक, 40 हजार महिलाएं प्रति 30 लाख प्रभावित महिलाओं में और 1.50 लाख पुरुष प्रति 5 लाख प्रभावित पुरुषों में आत्महत्या कर लेते हैं। 
पुरुष, जानबूझकर यूरोप और अमेरिका में अपने जीवन को लेते हैं (दुनिया की आबादी के 30% (लगभग)दी)। 2015 तक, मोरक्को, लेसोथो और दो कैरीबियाई देशों, कुछ दक्षिण और पूर्वी एशियाई देशों के अलावा दुनिया की बीस प्रतिशत विश्व जनसंख्या में लिंग भूमिकाओं को बदलने की वजह से महिलाओं की तुलना में पुरुषों में आत्महत्या दरें विश्व स्तर पर अधिक हैं।
यद्यपि महिलाएं पुरुषों की तुलना में आत्मघाती विचारों से अधिक प्रभावित होती हैं, फिर भी पुरुषों के बीच आत्महत्या की दर अधिक होती है। औसतन, प्रत्येक महिला के लिए लगभग तीन पुरुष आत्महत्याएं होती हैं - हालांकि एशिया के कुछ हिस्सों में अनुपात बहुत अधिक संकुचित होता है। 

पुरुषों और महिलाओं में विभिन्न आत्महत्या दरों के कई संभावित कारण हैं ::- 
               नशा, मान्यता, मानसिक विकार, शरीरिक दुर्बलता, लिंग समानता के मुद्दों, पुरुषों और महिलाओं के लिए तनाव और संघर्ष से निपटने के सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीकों में अंतर,  प्राथमिकतायें, देखभाल-मांग दरों में मतभेद आदि में अंतर के कारण आत्महत्या के लिए यौन अनुपात में अंतर पता चलता है। यह एक बहुत विस्तृत श्रृंखला है जो कि इन विभिन्न कारणों के सापेक्ष विभिन्न देशों में अलग-अलग और क्षेत्र में काफी भिन्न होते हैं।
           पश्चिमी देशों में पुरुषों की तुलना में आत्महत्या से मरने की संभावना 300% या तीन गुना होती है, जबकि कुछ देशों (कुल मिलाकर सौ मिलियन से अधिक निवासियों की गणना) 600% आंकड़े से अधिक है। पूर्व सोवियत ब्लॉक और कुछ लैटिन अमेरिका के देशों में नर मादा आत्महत्या अनुपात में सबसे महत्वपूर्ण अंतर उल्लेखनीय है।

वैश्विक स्तर पर, 2015 में आठ देशों में महिलाओं की आत्महत्या दर अधिक थी। जिसका प्रमुख पहलु था -पारंपरिक लिंग भूमिकाओं की स्थानीयता। चीन में महिलाएं आत्महत्या करने के लिए पुरुषों की तुलना में 30% ज्यादा थीं और कुछ अन्य दक्षिण एशियाई देशों में 60% तक थीं। समग्र दक्षिण एशियाई (दक्षिण-पूर्वी एशिया समेत) समस्त आयुवर्ग के लिए पुरुष:महिला अनुपात 1.7:1 था जो की वैश्विक औसत के आसपास था। 

अध्ययनों से पता चला है कि युवा महिलाओं को आत्महत्या करने का उच्च जोखिम है, इसलिए इस जनसांख्यिकीय की दिशा में बनाई गई नीतियां समग्र दरों को कम करने के लिए सबसे प्रभावी हैं। शोधकर्ताओं ने आक्रामक दीर्घकालिक उपचार की सिफारिश की है और उन पुरुषों के लिए अनुवर्ती है जो आत्मघाती विचारों के संकेत दिखाते हैं।
लिंग भूमिकाओं और सामाजिक मानदंडों, और विशेष रूप से मादात्व के बारे में विचारों के बारे में सांस्कृतिक दृष्टिकोण को स्थानांतरित करना, लिंग अंतर को बंद करने में भी योगदान दे सकता है: सामाजिक स्थिति और काम करने वाली भूमिका पुरुषों की पहचान के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।