chhattisgarh ke kshetriya rajvansh
छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय राजवंश
राजर्षितुल्य वंश
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यह छत्तीसगढ़ का प्रथम स्थानीय राजवंश है
·
इनका शासन 4-6 वीं शताब्दी तक था
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राजधानी |
आरंग (जिला-रायपुर) |
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शासनकाल |
चौथी से छठवीं शताब्दी |
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शासनकाल के संबंध में स्त्रोत |
आरंग ताम्रपत्र (भीमसेन-II) |
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क्षेत्र |
दक्षिण कोसल |
राजर्षितुल्य कुल के प्रमुख शासक –
1. सुरा
2. दयित-I
3. विभीषण
4. भीमसेन – I
5. दयित – II
6. भीमसेन – II
राजर्षितुल्य कुल के महत्वपूर्ण तथ्य –
§ इसके शासक सूरा के कारण इसे
सूरवंश के नाम से भी जाना जाता है ।
§ आरंग ताम्रपत्र से ही इस राजवंश के शासकों के
संबंध में जानकारी मिलती है ।
§ उपाधि – राज्ययोगी
§ भीमसेन – II ने हरिस्वामी और बोप्पस्वामी को
गाँव दान में दिया था (आरंग ताम्रपत्र के अनुसार )
§ आरंग ताम्रपत्र में सुवर्ण नदी का उल्लेख मिलता
है ।
§ राजर्षितुल्य वंश का संबंध तत्कालीन कलिंग नरेश खारवेल से था ।
गुप्तों की अधीनता स्वीकार की थी, (अनुमानत: गुप्त संवत के उपयोग के कारण) ।
पर्वतद्वारक वंश
Ø
पर्वतद्वारक वंश छत्तीसगढ़ का एक प्राचीन
राजवंश था जो राजर्षितुल्यकुल (या सूरवंश) के पतन के बाद उभरा था।
Ø
यह वंश ज्यादा विस्तृत नहीं सिमित था और इसका कार्यकाल भी
ज्यादा अवधि का नहीं रहा था।
Ø
प्रमुख तथ्य
o क्षेत्र - देवभोग (गरियाबंद)
o शासनकाल - 5
वीं शताब्दी के आस-पास
o उपासक - इस
वंश के लोग स्तम्भश्वरी देवी के उपासक थे।
o संस्थापक - सोम्मनराज
को पर्वत द्वारक वंश का प्रथम राजा माना जाता है।
o शासक - 1.
सोम्मनराज 2. तुष्टिकर
o अभिलेख - तेराशिंघा
ताम्रपत्र – तुष्टिकर द्वारा ( तेल नदी घाटी से प्राप्त )
o दान - सोम्मनराज
ने अपनी माता कौस्तुभेश्वरी के स्वास्थ्य लाभ के लिए देवभोग नामक क्षेत्र का दान
किया था, ।
Ø
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
o देवभोग क्षेत्र
के चावल गरियाबंद जिले की पहचान है। लोक मान्यता है कि पूर्व में देवभोग क्षेत्र
का चावल, भगवान जगन्नाथ के भोग के लिए जगन्नाथपुरी भेजा
जाता था इसलिए इस इलाके के चावल का नाम देवभोग हो गया।
o तुष्टिकर के
तेराशिंघा ताम्रपत्र जो कि तेल नदी घाटी से प्राप्त हुआ है से इस वंश के दो शासकों के बारे में जानकारी मिलती
है।
o तेल नदी घाटी
क्षेत्र को पर्वतद्वारक क्षेत्र के नाम से जाना जाता था इसी कारण इस वंश का नाम “पर्वतद्वारक
वंश” पड़ा।
Good
ReplyDeleteGood 👍🏻
ReplyDeleteRavindra
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