Wednesday, August 27, 2025

Buddhism and Jainism in Chhattisgarh in hindi

 

छत्तीसगढ़ में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के साक्ष्य और प्रभाव

Evidence and influence of Buddhism and Jainism in Chhattisgarh in hindi

Evidence and influence of Buddhism and Jainism in Chhattisgarh in hindi

बौद्ध काल को ऐतिहासिक काल की शुरुआत माना जाता है जहाँ से विस्तृत साक्ष्य प्राप्त होते हैं जैसे कि पुरातात्विक, साहित्यिक और यात्रा वृतांत । इसी काल से भारतीय इतिहास का क्रमिक विवरण प्रारंभ होता है ।

 

बौद्ध काल में छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

पुरातन काल से ही छत्तीसगढ़ का  धर्म और आस्था से गहरा संबंध रहा है। और इस संबंध का सीधा प्रभाव छत्तीसगढ़ के तात्कालीन समाज पर पड़ा था इससे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के बहुत सारे प्रमाण आज भी छत्तीसगढ़ के अनेक हिस्सों में देखे जा सकते हैं ।

 

छत्तीसगढ़ में बौद्ध धर्म

1. बौद्ध धर्म का उदय और सिद्धांत :   भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् के उपदेश और वभिन्न धर्मगत प्रचार में छत्तीसगढ़ का भी उल्लेख रहा है, यहाँ पर बौद्ध धर्म का व्यापक प्रसार देखने को मिलता है।

बौद्ध धर्म के त्रिरत्न, अष्टांगिक मार्ग, चार आर्य सत्य, मध्यम मार्ग आदि का यहाँ पर प्रचार प्रसार हुआ था और सामान्य जन जीवन में इसका पालन किया गया रहा होगा इसकी सम्भावना है ।

2. बौद्ध धर्म और मौर्यकाल : चूँकि बौद्ध धर्म के उदय के समय महाजनपद काल की व्यवस्था थी, इसी काल में मौर्य वंश ने बौद्ध धर्म के प्रचार में बहुत सहायता दी थी अतएव छत्तीसगढ़ क्षेत्र में मौर्यकाल के प्रभाव के साथ बौद्ध धर्म भी यहाँ पहुच गया इसमें सबसे महत्वपूर्ण था बौद्ध धर्म के प्रसार में बौद्ध भिक्षुओं की भूमिका।

इसके बहुत सारे साक्ष्य मिलते हैं कि मौर्य साम्राज्य बौद्ध धर्म के पालक थे छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों पर शिलालेख पाए जाते हैं, जिनमें अकलतरा, आरंग, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बलौदा, बारसूर आदि शामिल हैं जिसमे मौर्यकाल के साथ ही बौद्ध धर्म के प्रगति का विवरण मिलता है ।

3. छत्तीसगढ़ में बौद्ध अवशेष

 

v  सिरपुर (महासमुंद)

·          बौद्ध केन्द्र (स्वास्तिक विहार)

·         प्रभुआनंदकुटी विहार – यहाँ भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित है

·         बौद्ध टीला

·         तीवर विहार - भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित है

·         प्रतिवर्ष बौद्ध धर्म के अनुयायियों का सम्मेलन होता है

·         पाण्डुवंश के महाशिवगुप्त बालार्जुन ने यहाँ अनेक बौद्ध विहार के निर्माण करवाये थे ।

·         सिरपुर में बौद्ध, जैन और हिन्दू धर्म से संबंधित मंदिरों, विहारों तथा मठों के स्मारक और साक्ष्य मिलते हैं ।

v  माल्हार (बिलासपुर)

·         यहाँ से उत्खनन के पश्चात् बौद्ध धर्म के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, विशेषकर बौद्ध मूर्तियाँ

v  भोंगापाल (कोंडागांव)

·         यहाँ से बौद्ध चैत्य (चबूतरा) प्राप्त हुआ है

·         1990-91 में उत्खनन से इस चैत्य गृह की पहचान हुई ।

·         यहाँ पर प्राप्त हुए प्रतिमा को स्थानीय लोग “डोकरा बाबा” के नाम से पूजते रहे हैं ।

·         यह प्रतिमा भगवन बुद्ध की है, जो कि लगभग 6-7वीं सदी की अनुमानित है ।

·         इससे बस्तर क्षेत्र में बौद्ध प्रभाव स्पष्ट होता है ।

v  डोंगरगढ़ (राजनांदगांव)

·         यहाँ पर प्रज्ञागिरी नामक पहाड़ी पर गौतम बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है

·         यहाँ पर अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मलेन का आयोजन किया जाता है जो कि प्रतिवर्ष 6 फरवरी को होता है ।

 

v  उपरोक्त के अतिरिक्त अन्य स्थल हैं - ताला, अर्जुनी, भोरमदेव क्षेत्र।

4. सिरपुर का महत्व -    मौर्यकाल में जब बौद्ध धर्म से सम्बंधित साक्ष्य मिलते हैं वहां सिरपुर का विशेष स्थान है । यह तत्कालीन शिक्षा का केन्द्र रहा होगा और हर प्रकार से समृद्ध रहा होगा तभी यहाँ से विभिन्न प्रकार के मंदिरों, विहारों और अन्य महत्वपूर्ण स्मारकों के साक्ष्य मिलते हैं । इसके संबंध में प्रमुख तथ्य हैं -

o   दक्षिण कोशल की राजधानी।   

o   यहाँ के महत्वपूर्ण विहार जैसे :- अनंद विहार, स्वस्तिक विहार, पाण्डव विहार आदि।   

o   ह्वेनसांग की यात्रा का वर्णन भी सिरपुर से सम्बंधित है – व्हेनसांग यहाँ रुके थे ।

5. छत्तीसगढ़ में बौद्ध धर्म का सांस्कृतिक प्रभाव -    

o   छत्तीसगढ़ में बौद्ध संस्कृति का प्रभाव था जो कि यहाँ के पुरातन मूर्तिकला, स्थापत्यकला, लोककला में परिलक्षित होते हैं।

o   बौद्ध धर्म के प्राप्त स्मारकों से प्रतीत होता है कि इस धर्म का आदिवासी जीवन पर असर था।

 

छत्तीसगढ़ में जैन धर्म

 

1. जैन धर्म का उदय और सिद्धांत :  

महावीर स्वामी के उदय और उनकी शिक्षाओं के प्रसार से छत्तीसगढ़ भी अछूता नहीं था । जैन धर्म से सम्बंधित कई सारे महत्वपूर्ण साक्ष्य और स्मारक छत्तीसगढ़ से भी प्राप्त हुए हैं ।

जैन धर्म के अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य का यहाँ भी प्रभाव देखने को मिलता है।    महावीर स्वामी और उनके उपदेश विभिन्न माध्यमों तथा जैन धर्म के प्रचारकों से यहाँ छत्तीसगढ़ तक भी फैला था।

2. जैन धर्म का छत्तीसगढ़ में आगमन :  

जैन धर्म के आगमन और फैलाव में मुख्य कारण आवागमन तथा व्यापार था, इसके आगमन और प्रचार के संबंध में निम्न तथ्यों को देखा जा सकता है –

o   व्यापारियों और श्रावकों की भूमिका महत्वपूर्ण और निर्णायक थी ।     

o   गुप्तकाल और कलचुरीकाल में अधिकतम प्रसार।

3. जैन अवशेष :

o   सिरपुर (महावीर की मूर्तियाँ)।

o   माल्हार (जैन प्रतिमाएँ)।

o   भोरमदेव और ताला में प्राप्त साक्ष्य।  

o   बिल्हा, रायगढ़ और जांजगीरचांपा क्षेत्र में प्राप्त साक्ष्य।

o   गूंजी (दमाऊदहरा, सक्ती) से ऋषभदेव (प्रथम तीर्थंकर) के प्रतिमा

o   भाटागुडा (बस्तर) से शांतिनाथ (16 वें तीर्थंकर) के साक्ष्य

o   नगपुरा (दुर्ग) से पार्श्वनाथ (23 वें तीर्थंकर) के साक्ष्य

o   आरंग (रायपुर) से महावीर (24 वें तीर्थंकर) के साक्ष्य

4. जैन धर्म और प्रशासन :  

o   व्यापारियों का संरक्षण – तत्कालीन परिवेश से लेकर आज तक जैन धर्म को व्यापारियों के द्वारा संरक्षण मिलता रहा है ।

o   स्थानीय शासकों का सहयोग – प्रशासन और शासकों के सहयोग भी जैन धर्म को प्राप्त होता रहा है ।

5. जैन धर्म का सांस्कृतिक प्रभाव :   

o   स्थापत्यकला – विभिन्न जैन मंदिरों का निर्माण ।   

o   अहिंसा और व्यापार में नैतिकता – ज्यादातर जैन धर्म अवलंबी बेहद शांत और अहिंसा के समर्थक होते हैं, उनमे नैतिकता भी परिलक्षित होती है ।     

o   आदिवासी समाज पर असर – भाटागुडा में प्राप्त साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि जैन धर्म का प्रसार जंगलों और आदिवासियों तक भी रही होगी ।

 

 बौद्ध धर्म और जैन धर्म का तुलनात्मक अध्ययन (छत्तीसगढ़ पर प्रभाव)

Ø  समानताएँ:  दोनों धर्म में कुछ समानताएं थी  जाओ इस प्रकार हैं –

o   अहिंसा, संयम, साधुसंन्यास पर बल।

Ø  अंतर: लगभग समान समय में उदय के साथ इनमे कुछ समानताएं थी परन्तु पर्याप्त अंतर भी था जैसे की –

o    बौद्ध धर्म का अधिक प्रचारप्रसार और शासकीय संरक्षण, जबकि जैन धर्म व्यापारियों पर आधारित रहा।

Ø  दोनों धर्मों का छत्तीसगढ़ की मूर्तिकला, स्थापत्यकला, और लोकजीवन पर प्रभाव रहा ।

 

आधुनिक छत्तीसगढ़ में बौद्ध और जैन धर्म की स्थिति

Ø  सिरपुर महोत्सव (बौद्ध धरोहर को बढ़ावा)।

Ø  जैन समाज का व्यापार और सामाजिक योगदान।

Ø  पर्यटन और सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण।

Ø  बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति, कला, स्थापत्य और समाज को गहराई से प्रभावित किया।

Ø  आज भी इनके अवशेष और परंपराएँ छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर को गौरवान्वित करती हैं।

No comments:

Post a Comment