facts about chhattisgarh during vaidik kal छत्तीसगढ़ में वैदिक काल के प्रमुख तथ्य
1. प्रस्तावना
वैदिक काल भारतीय इतिहास का वह दौर है, जब वेदों की रचना हुई और भारतीय संस्कृति, धर्म, समाज व राजनीति की नींव पड़ी। यह काल लगभग 1500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व तक माना जाता है।
छत्तीसगढ़ में वैदिक काल के प्रत्यक्ष प्रमाण अपेक्षाकृत कम हैं, क्योंकि यह क्षेत्र वैदिक आर्यों के मुख्य केंद्रों से कुछ दूर स्थित था। फिर भी, पुरातात्विक, भाषाई और सांस्कृतिक प्रमाण यह बताते हैं कि छत्तीसगढ़ उस समय उत्तर और मध्य भारत की सांस्कृतिक धाराओं से जुड़ा हुआ था।
2. वैदिक काल का विभाजन
वैदिक काल को दो मुख्य चरणों में बांटा जाता है:
1. ऋग्वैदिक काल (1500 ई.पू.–1000 ई.पू.)
2. उत्तर वैदिक काल (1000 ई.पू.–600 ई.पू.)
3. छत्तीसगढ़ का भूगोल और वैदिक काल में महत्व
वैदिक काल में छत्तीसगढ़ का अधिकांश हिस्सा घने जंगलों और पहाड़ों से आच्छादित था।
यह क्षेत्र प्राचीनकाल में दक्षिण कौशल (Dakshina Kosala) के नाम से जाना जाता था, जिसका उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है।
महानदी, शिवनाथ, इंद्रावती जैसी नदियाँ यहाँ की प्रमुख जीवनरेखाएँ थीं।
यह इलाका वन्य जीव, वनौषधि और खनिज संसाधनों से भरपूर था, जिससे यहाँ के निवासियों का जीवन मुख्यतः शिकार, संग्रह और प्रारंभिक कृषि पर आधारित था।
4. छत्तीसगढ़ में वैदिक संस्कृति के प्रमाण
(A) भाषाई साक्ष्य
छत्तीसगढ़ की कुछ जनजातीय भाषाओं में वैदिक संस्कृत के शब्द आज भी पाए जाते हैं।
'कोशल' शब्द का संबंध 'कोसल' जनपद से है, जो उत्तर वैदिक काल में प्रसिद्ध था और इसका दक्षिणी भाग वर्तमान छत्तीसगढ़ में था।
(B) धार्मिक साक्ष्य
वैदिक काल में यज्ञ और हवन का महत्व था। छत्तीसगढ़ के कुछ प्राचीन स्थलों पर अग्निकुंड जैसे ढांचे मिले हैं, जो यज्ञ परंपरा से जुड़ सकते हैं।
नृसिंह, वराह जैसे वैदिकपुराणिक देवताओं के आदिम रूप जनजातीय कथाओं और प्रतीकों में मिलते हैं।
(C) पुरातात्विक साक्ष्य
माल्हार (बिलासपुर) और खैरागढ़ में उत्खनन से प्राप्त मिट्टी के बर्तन, ताम्र औजार, और प्रारंभिक लोहानिर्माण तकनीक, उत्तर वैदिक काल की ओर संकेत करते हैं।
रामगढ़ की पहाड़ियों और आसपास के क्षेत्रों के शिलाचित्रों में धार्मिक प्रतीकों के अंकन वैदिक सांस्कृतिक प्रभाव दर्शाते हैं।
5. वैदिक कालीन समाज और छत्तीसगढ़
(A) समाज
वैदिक समाज चार वर्णों में विभाजित था — ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
छत्तीसगढ़ की जनजातीय समाजव्यवस्था में भी कार्य के आधार पर विभाजन देखा जाता है, हालांकि यह वैदिक वर्ण व्यवस्था से अलग था।
विवाह और उत्सवों में गीतसंगीत और नृत्य की परंपरा वैदिक कालीन संस्कृति से मेल खाती है।
(B) अर्थव्यवस्था
वैदिक काल में कृषि, पशुपालन और व्यापार प्रमुख थे।
छत्तीसगढ़ के मैदानों में प्रारंभिक धान की खेती के प्रमाण मिले हैं, जो इसे वैदिक कृषि परंपरा से जोड़ते हैं।
वन उपज (शहद, फल, औषधि) व्यापार का एक हिस्सा थी।
(C) धर्म और दर्शन
देवताओं की पूजा में अग्नि, इंद्र, वरुण, सूर्य आदि का महत्व था।
छत्तीसगढ़ के कुछ जनजातीय त्योहार, जैसे पोला, हरियाली, और देव पूजा, इन वैदिक परंपराओं की झलक देते हैं।
6. छत्तीसगढ़ और महाकाव्य परंपरा
रामायण में वर्णित दक्षिण कोसल राज्य, श्रीराम की पत्नी सीता का मायका माना जाता है, जो वर्तमान छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, रायपुर और आसपास के क्षेत्रों में फैला था।
महाभारत में भी कोशल और विदर्भ के साथ दक्षिणी क्षेत्रों के उल्लेख मिलते हैं, जिनमें छत्तीसगढ़ के भूभाग का संदर्भ माना जाता है।
7. शिक्षा और ज्ञान परंपरा
वैदिक काल में शिक्षा गुरुकुल प्रणाली पर आधारित थी।
छत्तीसगढ़ के प्राचीन आश्रमपरंपरा (जैसे महर्षि वाल्मीकि का आश्रम) को वैदिक शिक्षा प्रणाली के प्रभाव से जोड़ा जाता है।
मौखिक परंपरा से ज्ञान का संचार होता था, और गीतोंस्तुतियों के रूप में वेद मंत्र गाए जाते थे।
8. वैदिक कालीन छत्तीसगढ़ की विशेषताएँ
1. भौगोलिक महत्त्व — उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ने वाला क्षेत्र।
2. प्राकृतिक संसाधन — वन संपदा, नदियाँ, खनिज।
3. सांस्कृतिक संगम — वैदिक परंपरा और जनजातीय संस्कृति का मिश्रण।
4. कृषि का विकास — धान और अन्य अनाज की प्रारंभिक खेती।
5. धार्मिक समन्वय — वैदिक देवताओं और स्थानीय देवताओं का सम्मिलन।
9. निष्कर्ष
वैदिक काल में छत्तीसगढ़ भले ही वैदिक आर्यों का प्रमुख केंद्र न रहा हो, लेकिन यह सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से वैदिक सभ्यता से जुड़ा हुआ था। यहाँ के जनजातीय समाज और परंपराएँ आज भी उस युग के प्रभाव को संजोए हुए हैं।
इस काल के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि छत्तीसगढ़ भारत की सांस्कृतिक धारा का अभिन्न हिस्सा रहा है, जिसने वैदिक और स्थानीय संस्कृतियों के संगम से एक विशिष्ट पहचान बनाई।
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