प्रागैतिहासिक काल (prehistoric
age)
छत्तीसगढ़ में प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric period in Chhattisgarh )
प्रागैतिहासिक
शब्द मानव इतिहास की उस अवधि के लिए प्रयुक्त होता है, जिसमें लेखन की व्यवस्था नहीं थी। अर्थात् इस काल
में लोगों को लेखन की जानकारी नहीं थी। इस काल में लोग अपना जीवन पत्थरों के औजार
बनाने में, शिकार करने में, भोजन-संग्रह आदि में व्यतीत करते थे । अतः इस
समाज की जानकारी किसी लिखित अभिलेखों के आधार पर नहीं की जा सकती बल्कि पुरातत्व
खोजों की सहायता से मुख्यतः पुरातात्विक साक्ष्यों, गुफाचित्रों, उपकरणों, खुदाई से प्राप्त अवशेषों और मानव-अवशेषों से प्राप्त की जाती है।
छत्तीसगढ़ में प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric period in Chhattisgarh )
परिचय -
छत्तीसगढ़, अपनी भौगोलिक स्थिति, नदियों की उपलब्धता और घने वनों के कारण, प्रागैतिहासिक मानव के निवास के लिए एक आदर्श स्थान रहा है। इस कारण छत्तीसगढ़ में भी प्रागैतिहासिक काल (prehistoric age) के मानव साक्ष्यप्राप्त हुए हैं।
वनों से घिरे हुए छत्तीसगढ़ के पर्वत और चट्टानों पर प्राचीन काल की विभिन्न
कला के रूप आज भी कहीं-कहीं दिखाई पड़ते हैं जो शैलचित्र प्राचीन मानवीय सभ्यता के
विकास को प्रारंभिक रूप से स्पष्ट करते हैं यह शैलचित्र मानव मन के विचारों को
व्यक्त करने के साधन थे।
कल विभाजन -
प्रागैतिहासिक काल (prehistoric age) को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है। जो की निम्नलिखित है-
1. पाषाण युग (Stone
Age) – इसके अंतर्गत निम्न विभाजन देखें -
· पुरापाषाण (Paleolithic)
· मध्यपाषाण (Mesolithic)
· उत्तर पाषाण (pre Neolithic )
· नवपाषाण (Neolithic)
2. धातु युग (Metal
Age) – इस काल में मानव ने कुछ धातुओं की खोज करके
उनका उपयोग प्रारम्भ कर लिया था -
· ताम्रपाषाण (Chalcolithic)
· कांस्य युग (Bronze Age)
· लौह युग (Iron Age)
3. इतिहास-पूर्व
संक्रमण काल (Protohistoric Period) – यह एक संक्रमण का दौर था
जब मनुष्य अपनी विकसित सभ्यता की और बढ़ने लगा था ।
छत्तीसगढ़ में काल विभाजन और
छत्तीसगढ़ में प्रागैतिहासिक मानव के साक्ष्य -
भारत की तरह ही छत्तीसगढ़ के प्रागैतिहासिक काल (prehistoric age) को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जाता है ।
छत्तीसगढ़ में भी उपर दर्शित काल विभाजन का पालन किया गया है, इसके संबंध में
जानकारी निम्न में उल्लेखित है -
1. (A) पाषाण युग (Stone Age) - पुरापाषाण काल या पूर्व पाषाण काल -
छत्तीसगढ़ में भी पुरापाषाण काल के लोग शिकार और भोजन-संग्रह पर निर्भर थे। उनका मुख्य निवास गुफाओं, शैलाश्रयों में हुआ करता था ।
प्रागैतिहासिक काल (prehistoric age) में जब मनुष्य गुफाओं में रहते थे तब उन्होंने इन शैलाश्रयों में अनेक चित्र बनाएं तथा इसके अलावा इस काल की विभिन्न औजार (जैसे :- पत्थरों के औजार जैसे हाथ-कुल्हाड़ी (Hand Axe), स्क्रैपर, चॉपर मिले हैं।) एवं स्मारक भी छत्तीसगढ़ में मिलते हैं ।
प्रागैतिहासिक काल (prehistoric age) की सर्वाधिक शैलचित्र रायगढ़ जिले से प्राप्त हुए हैं तथा पूर्व पाषाण कालीन
स्थल भी रायगढ़ जिले में ही स्थित है, इस कारण रायगढ़ को “शैलाश्रयों
का गढ़” भी कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ में
पूर्व पाषाण काल से संबंधित स्थल निम्न है -
1.सिंघनपुर की गुफा - इसकी खोज एंडरसन ने सन 1910 ई. में अपने
साथियों के साथ की तथा इसका विस्तृत अध्ययन अमरनाथ दत्त ने (सन 1923 -1927 ई) के मध्य किया था।
सिंघनपुर
की गुफा रायगढ़ जिले में स्थित है , इसे छत्तीसगढ़ का
भीमबेटका के नाम से भी जाना जाता है। सिंघनपुर की गुफा चवरढाल पहाड़ी
के गिरीपाट पर स्थित है, चवरढाल पहाड़ी पर्वतों की एक ऐसी श्रृंखला है
जो हसदेव नदी और मांड नदी बेसिन में स्थित है।
सिंघनपुर की भारत में अब तक ज्ञात शैलाश्रयों में प्रागैतिहासिक मानव (एवमैन) एवं
मृतसांगना (मरमेड) का शैलचित्र सिंघनपुर की गुफा से प्राप्त हुआ है। इन शैल
चित्रों में लाल रंग में पशु सरीसृप तथा टोटेमवादी विभिन्न शैल चित्रों का अंकन किया गया है वही
गेरुआ रंग में मानव आकृति व सीढ़ी एवं दंड की आकृति अंकित है ।
सिंघनपुर
की गुफा में हस्त चलित कुदाल व पांच कुलहड़ियों जैसे औजार भी
प्राप्त हुए हैं।
इन गुफाओं की
विशेषताओं को देखें तो यहां पाए जाने वाले शैलचित्र सर्वाधिक प्राचीन है, अर्थात यह छत्तीसगढ़ की प्राचीनतम गुफा भी है तथा यह पृथ्वी पर मौजूद सबसे
प्राचीन मूर्तियों को रखने का गौरव भी इसे प्राप्त है जो मेक्सिकन और स्पेनिश
मूर्तियों के समान दिखाई देती है।
2. छापामारा (रायगढ़)
3.भवरखोल (रायगढ़)
4.गिधा (रायगढ़)
5.सोनबरसा (रायगढ़)।
6. रामगढ़ पहाड़ियाँ (सरगुजा) – गुफाचित्र व चट्टान आश्रय
7. खड़गांव (राजनांदगांव)
8. कोटमी-सोनार (कोरबा)
9. भोरमदेव (कवर्धा)
रामगढ़ की जोगीमारा गुफा भारत की प्राचीनतम चित्रकला स्थलों
में से एक मानी जाती है।
1. (B) पाषाण युग (Stone Age) - मध्यपाषाण काल
इस काल में जलवायु परिवर्तन हुआ और मनुष्य द्वारा शिकार के साथ मछली पकड़ना और भोजन के छोटे स्रोत अपनाना शुरू हुआ।
मनुष्य ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सूक्ष्म औजार (Microliths) का प्रयोग करना प्रारंभ किया ।
इस काल से प्राप्त
साक्ष्यों में गुफाचित्रों में
पशु, मानव आकृतियाँ, नृत्य, शिकार के दृश्य मिलते हैं।
मध्य पाषाण कालीन स्थलों की खोजकर्ता का श्रेय अमरनाथ दत्त को जाता है, जिन्होंने मध्य पाषाण काल के साक्ष्य रायगढ़ जिले के कबरा पहाड़ एवं बस्तर जिले के विभिन्न स्थानों से प्राप्त किए ।
मध्य पाषाण कालीन
प्रमुख स्थानों से प्राप्त हुए है साक्ष्य जो
कि निम्न लिखित है -
(1) कबरा पहाड़ - रायगढ़ जिले में स्थित है इसकी
खोजकर्ता का श्रेय अमरनाथ दत्त जी को जाता है यहां सर्वाधिक शैल चित्रों की
प्राप्ति हुई है।
कबरा पहाड़ रायगढ़ जिले के गजमार पहाड़ी पर स्थित है।
कबरा पहाड़ के शैलचित्रों में गेरुआ रंग में कछुआ, घोड़ा, हिरण एवं जंगली भैंसा का विशाल चलचित्र प्राप्त
हुआ है।
लाल रंग में छिपकली, घड़ियाल, सांभर तथा पंक्तिबद्ध
मानव समूह के शैलचित्र यहां विद्यमान है।
बाघ से घबराया हुआ मनुष्य तथा एक मानव का वर्गाकार शैलचित्र जिस पर अनेक
लहरदार पंक्तियां अंकित है यहां से प्राप्त हुई है ।
इस गुफा से पाषाण युग के औजारों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं लंबे फलक एवं अर्ध
चंद्राकर वाले लघु पाषाण व चमकदार पत्थर के सूक्ष्म उपकरण यहां से प्राप्त हुए
हैं।
इसके अलावा और भी स्थल है जहां से मध्य पाषाण
काल शैल चित्र प्राप्त हुए हैं। जैसे -
(2) बस्तर
क्षेत्र में - कलीपुर, खड़क घाट, गढ़ चंदेला, घाट लोहंगा,भातेवाड़ा, राजपुर ,गढ़ धनोरा।
1. (C) पाषाण युग
(Stone Age) - उत्तर पाषाण काल
उत्तर पाषाण काल के साक्ष्य महानदी घाटी (रायगढ़) टोटमवादी चिन्ह प्राप्त हुए
हैं, धनपुर (गौरेला पेंड्रा मरवाही) मे मानव आकृतियों का चित्रण
प्राप्त हुआ है।
1. (D) पाषाण युग
(Stone Age) - नव पाषाण काल
इस कल में मुख्य
परिवर्तन इस प्रकार हैं –
·
कृषि और पशुपालन
का प्रारंभ ।
·
पीसे हुए पत्थर
के औजार, मिट्टी के बर्तन (Pottery)
का उपयोग।
· स्थायी बस्तियों की शुरुआत।
नवपाषाण कालीन स्थल निम्न है -
(1) चितवाडोंगरी - चितवा
डोंगरी की खोजकर्ता का श्रेय श्री डॉक्टर रमेंद्र नाथ मिश्रा एवं भगवान सिंह बघेल
को जाता है यह ग्राम सहगांव विकासखंड डोंडी लोहारा जिला बालोद में स्थित है।
·
यहां की तीन
गुफाओं में 27 शैल चित्रों की प्राप्ति हुई है
·
ये शैल चित्र
गेरुआ रंग के हैं जिनमें चीनी ड्रैगन ,खच्चर पर सवार व्यक्ति, एक नाविक, कृषि कार्य के शैल चित्र आदि अंकित है।
(2) करमागढ़ - रायगढ
जिले में स्थित है यह नव पाषाण स्थल, उड़ीसा राज्य की सीमा पर स्थित है।
(3) ओगना - रायगढ़ की
बानी पहाड़ी पर स्थित है ।
(4) बसनाझर - यह
रायगढ़ जिले में स्थित है
·
यहाँ के शैल
चित्रों में भैंस, हाथी, गैंडा जैसे पशुओं के
शिकार करते हुए चित्र अंकित है।
2. धातु युग (Metal Age) - ताम्रपाषाण एवं
लौह युग
जैसा की हम नाम से
समझ सकते हैं कि इस काल में मनुष्यों द्वारा कुछ सुधार और खोज कार्य किया गया और
अपने लिए ज्यादा मजबूत और परिष्कृत औजार, उपकरणों की व्यवस्था की गई जो कि पत्थरों
की तुलना में ज्यादा उपयोगी थे ।
इस काल से सम्बंधित तथ्य हैं -
ताम्रपाषाण काल :- तांबे के औजार और मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग ।
लौह युग : कृषि उपकरण, हथियार बनाने में लोहे का उपयोग।
प्रमुख सम्बंधित स्थल : माल्हार (बिलासपुर), खैरागढ़, रतनपुर – यहाँ ताम्र व लौह दोनों युग के अवशेष मिले हैं।
छत्तीसगढ़ में गुफाचित्र और कला
· छत्तीसगढ़ के गुफाचित्रों में लाल, सफेद और पीले रंग का प्रयोग अधिक है।
· प्रमुख विषय: शिकार, नृत्य, धार्मिक प्रतीक, युद्ध दृश्य।
छत्तीसगढ़ के प्रागैतिहासिक स्थल हमें यह बताते हैं कि यहाँ का मानव जीवन बहुत प्राचीन और निरंतर विकसित होता रहा है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र न केवल प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर था, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध था।
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