Thursday, August 21, 2025

PREHISTORIC PERIOD - INDIA

 

भारत का इतिहास

 

  प्रागैतिहासिक काल (PREHISTORIC PERIOD)

 

प्रागैतिहासिक काल मनुष्य के उदभव का अनुमानित समय 10 से 14 मिलियन ई. पू. बताया जाता है सबसे पुराने मनुष्य का जो अवशेष अफ्रीका से प्राप्त हुआ है वह भी 4.2 मिलियन ई. पू. का है।

 50000 वर्ष पूर्व होमो सेपियंस का प्रादुर्भाव हुआ जो आधुनिक मनुष्य के संभवत प्रथम पूर्वज थे प्राग ऐतिहासिक मनुष्य पत्थर के खुरदरे औजारों का उपयोग करते थे प्रागैतिहासिक काल के उतरवर्ती काल में पत्थर के पॉलिस्टर औजारों का प्रयोग किया जाने लगा। इस काल में पत्थरों का अत्यधिक प्रयोग किए जाने के कारण इसे पाषाण काल या फिर पत्थरों का काल भी कहा जाता है।

 प्रागैतिहासिक काल को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया गया है-

(1) पूर्व पाषाण काल /पूरा पाषाण काल

(2) मध्य पाषाण काल

(3) नवपाषाण काल 

(4)ताम्र पाषाण काल।

 

 पुरापाषाण काल या पूर्व पाषाण काल।

 

 इस काल में मनुष्य जंगलों में भ्रमण कर अपना जीवन यापन करता था। वह पत्थरों से निर्मित औजारों का प्रयोग  किया करता था भोजन के लिए वे आमतौर पर शिकार व आखेट का प्रयोग  किया करते थे।

इस काल में  चमकदार पत्थरों का आविष्कारक किया गया ये आम तौर पर शिकार करने के लिए इनका उपयोग किया करते थे। अगर हम पुरापाषाण काल के समय का निर्धारण करे तो यह 10 लाख से 50000 ईसा पूर्व के मध्य होगा । इस युग के मनुष्य शिकारों पर आधारित था वह खाद्य सामग्रियों की खोज के लिए विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया करता थे। 

पूर्व पाषाण कालीन स्थल- सोहन नदी घाटी (पंजाब)  सबसे पुराना हस्त कुठार,  हथनोरा (मध्य प्रदेश), पल्लवरम (तमिलनाडु)।

 

 

भारत में पुरापाषाण काल को तीन भागों में विभाजित किया गया है-

(a) निम्न पुरापाषाण काल- पंजाब, कश्मीर ,सोहन घाटी, सिंगरौली घाटी, छोटा नागपुर, असम, नर्मदा घाटी ,आंध्र प्रदेश।

(b)मध्य पुरापाषाण काल - नेवासा महाराज डीडवाना राजस्थान भीमबेटका मध्य प्रदेश नर्मदा घाटी बांकुरा।

(c) उच्च पुरापाषाण काल-  कुरनूल, चित्तूर आंध्र प्रदेश, कर्नाटक,राजस्थान ,गुजरात।

 

 

 मध्य पाषाण काल

 

 पुरापाषाण काल तथा नवपाषाण काल के संक्रमण काल को मध्य पाषाण काल कहा जाता है ।

भारत में मध्य पाषाण काल का समय 50000 ईसा पूर्व से 10000 ई.पू. के मध्य निर्धारित किया जाता है इस समय पत्थरों से निर्मित औजार  पॉलिशदार हुआ करते थे।  इस काल में प्रयुक्त औजार बहुत छोटे होते थे जिन्हें माइक्रोलिथ के नाम से भी जाना जाता था । पत्थरों के लघु औजारों का प्रयोग किया जाता था। इस युग में पशुपालन की शुरुआत हो चुकी थी।

 मध्य पाषाण कालीन स्थल  आदमगढ़ (मध्य प्रदेश), नागौर (राजस्थान),  सांभर झील निक्षेप( राजस्थान)। सराय नाहर राय (उत्तर प्रदेश) , महदहा (उत्तर प्रदेश)

 

 

 उत्तर पाषाण काल/ नवपाषाण काल

 

10000 ईसा पूर्व से ऐतिहासिक काल तक के पाषाण काल को नव पाषाण काल की संज्ञा दी गई है। नवपाषाण काल के लिए नियोलिथिक शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1865 ईस्वी में सर जॉन लूबॉक ने किया था।  पॉलिएस्टर औजारों के प्रयोग के साथ-साथ इस युग में धातु के औजारों का भी प्रयोग किया  जाने लगा , कृषि की शुरुआत भारत में धान की खेती का प्राचीनतम साक्ष्य इसी काल दें है । पहिए का आविष्कार इसी युग में हुआ जिससे आवागमन की सुविधा प्राप्त हुई तथा मनुष्य में स्थाई निवास की प्रवृत्ति इसी कल से मानी जाती है। पशुओं को पालतू बनाना कृषि व्यवहार का प्रथम प्रयोग करना जिसे तथा पॉलिशदार पत्थरों के औजारों का निर्माण करना मृद भांड  का निर्माण करना इस कल की प्रमुख विशेषताओं में एक है।

 

 ताम्र पाषाण काल

 

 इसे ताम्र पाषाण कालीन युगीन सभ्यता भी कहा जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता और केलकोलिथिक एज  के नाम से भी इसे जाना जाता है। ताम्र पाषाण मालवा संस्कृति के अवशेष नवादा टोली व महेश्वर से प्राप्त किया गया है सर्वप्रथम मनुष्य के द्वारा जिस धातु का प्रयोग औजारों के रूप में किया गया वह तांबा ही है ।

 ताम्र पाषाण काल के लोग मुख्यतः ग्रामीण समुदाय के थे भारत में ताम्र पाषाण युग के मुख्य क्षेत्र दक्षिणी पूर्वी राजस्थान (अहार   एवम गिलुंड),पश्चिमी मध्य प्रदेश( मालवा , कयथा और इवेंट पश्चिम महाराष्ट्र तथा दक्षिण में पूर्वी भारत है मालवा संस्कृति की ही एक विलक्षणता है मालवा मृदभांड, जो ताम्र पाषाण मृदभांड में उत्कृष्टतम माना गया है सबसे विस्तृत उत्खनन पश्चिम महाराष्ट्र से में प्राप्त हुए हैं जहां उत्खनन हुआ है वह स्थल अहमदनगर जॉर्वे, नेवासा  एवं दैमाबाद पुणे में चंदौली सोनी गांव एवं इनाम गांव।


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