राम वनगमन पथ
Ram vangaman path aur ramayan kal
छत्तीसगढ़ में रामायण काल के प्रमुख साक्ष्य और राम वन गमन पथ
1. प्रस्तावना
छत्तीसगढ़ प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है। रामायण में वर्णित दक्षिण कोसल का एक बड़ा हिस्सा आज का छत्तीसगढ़ था।
माना जाता है कि श्रीराम ने वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग 10 वर्ष छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों में बिताए।
छत्तीसगढ़ सरकार ने भी इन स्थलों को राम वन गमन पर्यटन परिपथ के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है।
2. ऐतिहासिक और साहित्यिक साक्ष्य
(A) प्राचीन नाम और भूगोल
छत्तीसगढ़ को प्राचीन ग्रंथों में दक्षिण कोसल कहा गया है।
वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण और पद्म पुराण में इसका उल्लेख मिलता है।
महाकाव्य में चित्रकूट से दंडकारण्य और फिर दक्षिण की ओर बढ़ते समय राम का मार्ग इस क्षेत्र से होकर गया माना जाता है।
(B) जनश्रुतियाँ और लोककथाएँ
छत्तीसगढ़ की अनेक जनजातीय लोककथाओं में श्रीराम और सीता के किस्से प्रचलित हैं।
कंटकनगर (वर्तमान कोरिया), शिवरीनारायण, रामगढ़, और चित्रकोट जैसे स्थान लोकमान्यताओं से जुड़े हैं।
3. प्रमुख साक्ष्य
1. शिवरीनारायण (जांजगीरचांपा)
यहाँ त्रिपाठी आश्रम में यह मान्यता है कि वनवास के दौरान श्रीराम, सीता और लक्ष्मण ने यहाँ रुककर शिवरीनारायण भगवान के दर्शन किए।
महानदी और शिवनाथ नदियों के संगम पर स्थित यह स्थान धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
2. रामगढ़ (सुरजपुर)
यहाँ की सीता बेंगरा और जोगीमारा गुफा प्राचीनतम शैलचित्र और रंगचित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं।
किंवदंती है कि सीता ने यहाँ कुछ समय बिताया था।
यह गुफाएँ पुरातात्विक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं (2वीं शताब्दी ईसा पूर्व)।
3. चित्रकोट जलप्रपात (बस्तर)
इसे ‘भारत का नियाग्रा’ कहा जाता है।
जनश्रुति है कि श्रीराम यहाँ कुछ दिन रुके थे और इसे उनका प्रिय स्थान माना जाता है।
4. भूलि भांवरी (कोरिया जिला)
माना जाता है कि वनवास के दौरान यहाँ वन्य जीवन के बीच सीता ने भोजन तैयार किया था।
5. कंटक नगर (कोरिया जिला)
यहाँ से राम वन गमन का प्रारंभिक मार्ग छत्तीसगढ़ में प्रवेश करता है।
4. राम वन गमन पथ (छत्तीसगढ़)
राम वन गमन पथ वह मार्ग है, जिस पर श्रीराम अयोध्या से वनवास के दौरान चले थे और दंडकारण्य क्षेत्र से होते हुए आगे बढ़े।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा चिह्नित प्रमुख स्थान:
1. कंटक नगर (कोरिया)
2. भरतपुर
3. मारकापुर
4. सीतामढ़ीहरचौका (कोरिया)
5. रामगढ़ (सुरजपुर)
6. शिवरीनारायण (जांजगीरचांपा)
7. चंदखुरी (रायपुर) — यहाँ माता कौशल्या का मंदिर है, जो श्रीराम की मातृभूमि से जुड़ा है।
8. आरंग
9. राजिम (गरियाबंद) — त्रिवेणी संगम का स्थान।
10. सिहावा (धमतरी) — यहाँ से महानदी का उद्गम है।
11. चित्रकोट (बस्तर)
12. सुकमा और दंतेवाड़ा — आगे आंध्र प्रदेश और कर्नाटक की ओर प्रस्थान।
5. पुरातात्विक प्रमाण
गुफाचित्र, प्राचीन मंदिरों के अवशेष, और ताम्रपत्र शिलालेख इस क्षेत्र में प्राचीन धार्मिक गतिविधियों का प्रमाण देते हैं।
रामगढ़ की सीता बेंगरा गुफा में मिले चित्र, छत्तीसगढ़ के रामायणकालीन महत्व को दर्शाते हैं।
6. सांस्कृतिक महत्व
छत्तीसगढ़ के लोकगीतों, पंडवानी, और रामनामी संप्रदाय की परंपरा में रामकथा का विशेष स्थान है।
मड़ई मेले, रामलीला और रथयात्रा जैसे आयोजन आज भी इन स्थलों पर होते हैं।
7. निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ में रामायण काल के साक्ष्य केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि ये इतिहास, संस्कृति और लोकस्मृति का अनमोल संगम हैं।
राम वन गमन पथ न केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देता है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की पहचान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करता है।
छत्तीसगढ़ में रामायण काल से जुड़े 52 प्रमुख स्थल
UPSC/CGPSC स्तर पर अध्ययन के अनुरूप, नीचे 52 महत्वपूर्ण तथ्यात्मक स्थान दिए गए हैं जो राम वन गमन पथ से सीधे जुड़े हैं। इनमें से पहले चरण के प्रमुख 8 स्थल प्रमुख रूप से विकसित किए जा रहे हैं, जबकि अन्य 44 स्थान क्रमशः जुड़े जा रहे हैं.
1. प्रथम चरण (पहले विकसित किए गए 8 स्थल)
1. सीतामढ़ी हरचौका (कोरिया) – वनवास शुरू, 17कोठी गुफाएँ
2. रामगढ़ की पहाड़ी (सरगुजा) – सीताबेंगरा गुफा, जन्मकथा स्थल
3. शिवरीनारायण (जांजगीरचांपा) – शबरी का प्रसाद स्थान
4. तुरतुरिया (बलौदाबाजार) – वाल्मीकि आश्रम, लवकुश जन्म
5. चंदखुरी (रायपुर) – माता कौशल्या की जन्मभूमि
6. राजिम (गरियाबंद) – त्रिवेणी संगम, कुलेश्वर मंदिर
7. सिहावा (धमतरी) – सप्तऋषि आश्रम स्थल
8. जगदलपुर (बस्तर) – चित्रकोट मार्ग, वनवास क्षेत्र प्रारंभ
2. द्वितीय चरण (शेष 44 विकसित किए जाने वाले स्थल)
उत्तर छत्तीसगढ़ (कोरिया, सरगुजा, जशपुर इत्यादि):
सीतामढ़ी घाघरा, घाघरा (सीतामढ़ी का विस्तार)
रामगढ़ (सोनहट), देवगढ़, मैनपाट, սահմանडल्लरगढ़, मंगरेलगढ़, सारासोर, रक्सगंडा, पंपापुर\\
मध्य छत्तीसगढ़ (रायपुर, बिलासपुर, बलौदाबाजार, जगदलपुर क्षेत्र):
मल्हार, बीलद्वार गुफा (सरगुजा), देवधरमा, धान जमाली, लक्ष्मण पंजा
नगरी, गंगरेल (राम टेकरी), मधुबन धाम (मगरलोड), रुद्रेश्वर महादेव (रायपुर), सिरपुर
चित्रकोट, बारसूर, रामाराम (सुकमा), नारायणपुर (रक्सा डोंगरी), छोटे डोंगरी
दक्षिण छत्तीसगढ़ (धमतरी, सुकमा, नारायणपुर, कांकेर, दुंतेवाड़ा):
रामाराम, इंजरम, कोंटा, बस्तर के त्रेतायुग स्थल
अतिरिक्त तथ्य और साहित्यिक प्रमाण
छत्तीसगढ़ को वैदिक ग्रंथों में दक्षिण कौशल कहा गया है, जो रामायण में वर्णित दक्षिणी वनवास क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है।
कुल 75 स्थलों की सूची तैयार है, जिनमें से 51 स्थल को छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रतिष्ठित और प्रमाणित किया है ।
राम वन गमन पथ की कुल लंबाई लगभग 2260 किलोमीटर है, जो कोरिया (सीतामढ़ी) से सुकमा (रामाराम) तक फैला है।
जंगल, नदियाँ, गुफाएँ, मन्दिर—रामायण काल की घटनाओं का आभास आज भी इन स्थानों में मिलता है—जैसे सीतामढ़ी की गुफाएँ, शिवरीनारायण का वट वृक्ष, चंदखुरी का कौशल्या मंदिर, और राजिम का संगम स्थल।
सारांश सूची — प्रमुख रामायण कालीन स्थल सारांश में:
| क्षेत्र | महत्वपूर्ण स्थल (8 प्रमुख) |
| | |
| उत्तर छ.गढ़ (प्रारंभ) | सीतामढ़ी हरचौका, रामगढ़, शिवरीनारायण, तुरतुरिया |
| मध्य छ.गढ़ | चंदखुरी, राजिम, सिहावा, जगदलपुर |
| विस्तारित
क्षेत्र | मल्हार, मैनपाट, राजिम, चित्रकोट, रामाराम, आदि (कुल 52 स्थल) |
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