Sunday, August 10, 2025

विश्व आदिवासी दिवस - WORLD TRIBAL DAY (International Day of the World’s Indigenous Peoples)

 

विश्व आदिवासी दिवस (WORLD TRIBAL DAY)

(International Day of the World’s Indigenous Peoples)

विश्व आदिवासी दिवस (WORLD TRIBAL DAY)  (International Day of the World’s Indigenous Peoples)

विश्व भर में विभिन्न संस्कृति अपने वर्चस्व की रक्षा तथा आधुनिक युग में स्वयं की प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए निरंतर प्रयासरत है । इसी प्रकार वैश्विक तौर पर जनजातीय हितों की रक्षा हेतु तथा उनके महत्व को जानने समझने हेतु विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day)मनाया जाता है। यह दिन आदिवासी समुदायों के अधिकारों, संस्कृति, परंपराओं और उनके अस्तित्व के संरक्षण के लिए समर्पित है।

1. विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) :- परिचय और स्थापना

वैश्विक स्तर पर प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day)मनाया जाता है, इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के आदिवासी समुदायों के अधिकारों और चुनौतियों के प्रति जागरूकता फैलाना है।

आदिवासी समुदाय औपनिवेशिक शासन, बाहरी बसावट, या आधुनिकीकरण के कारण हाशिए पर चले गए, लेकिन आज भी अपनी पहचान और सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने की कोशिश करते हैं।

विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day)के दिन विभिन्न मंचों का आयोजन किया जाता है, रैलियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से विश्व भर के आदिवासी समुदाय के बारे में, उनकी संस्कृति और संस्कारों, प्रथाओं के बारे में प्रस्तुतियां दी जाती हैं।

 

2. विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day) :- इतिहास

      प्रारंभ में इसे International Day of the World's Indigenous People कहा जाता था और आज भी यही है।  भारत में इसे आमतौर पर विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day)या विश्व जनजातीय दिवस कहा जाता है।

 इससे पहले कोई वैश्विक दिवस आदिवासी समुदाय अथवा जनजातीय समुदाय या मूलनिवासी हेतु निर्धारित नहीं था जो विशेष रूप से आदिवासी समुदायों को समर्पित हो। अलग अलग स्तर पर स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग नामों से कार्यक्रम होते थे, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ (UNITED NATION’S – UN) की पहल के बाद यह एक अंतरराष्ट्रीय दिवस बन गया।

 

(1). स्थापना की पृष्ठभूमि

·         70 और 80 ( सन 1970 और 1980) के दशक में दुनिया भर में आदिवासी समुदायों के अधिकारों के उल्लंघन की घटनाएँ तेज़ी से सामने आ रही थीं जैसे आदिवासी भूमि पर कब्ज़ा, आदिवासियों के सांस्कृतिक पहचान का ह्रास और जातिगत भेदभाव।

·         आदिवासी समुदाय की इन समस्याओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने के लिए संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने 1981 में निर्णय लिया कि एक विशेष कार्य समूह बनाया जाएगा।

·         UN Working Group on Indigenous Populations (WGIP) की पहली बैठक (1982) - इस प्रकार 1982 में UN Working Group on Indigenous Populations (WGIP) की स्थापना हुई।

·         पहली बैठक (9 अगस्त 1982) - पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में हुई। यह बैठक संयुक्त राष्ट्र के Sub-Commission on Prevention of Discrimination and Protection of Minorities के अंतर्गत आयोजित हुई। (

·         इस बैठक की अध्यक्षता Erica-Irene Daes (ग्रीस की निवासी जो कि मानवाधिकार विशेषज्ञ हैं) ने की।

·         इस महत्वपूर्ण बैठक में दुनिया भर से आये आदिवासी प्रतिनिधि, मानवाधिकार कार्यकर्ता, और विभिन्न देशों के सरकारी प्रतिनिधि शामिल हुए थे ।

 

·         इस बैठक का मुख्य एजेंडा था -

1. आदिवासियों की परिभाषा तय करना

इस बैठक में "Indigenous Peoples"  शब्द की व्याख्या और उनकी पहचान तय करने पर चर्चा हुई।

"Indigenous Peoples" का मतलब है ऐसे लोग या समुदाय जो किसी क्षेत्र में प्राचीन काल से बसे हुए हैं (अर्थात् मूल निवासी) और जिनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा, परंपराएँ, और सामाजिक व्यवस्था होती है, जो उस क्षेत्र की मूल विरासत मानी जाती हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने इन्हें सटीक रूप से परिभाषित नहीं किया है, लेकिन UN Permanent Forum on Indigenous Issues (UNPFII) के अनुसार इनमें ये विशेषताएँ होती हैं :-

A. किसी क्षेत्र या देश में ऐतिहासिक निरंतरता।

B. स्वयं को अलग सांस्कृतिक समूह के रूप में पहचानना।

C. अपनी पारंपरिक संस्थाएँ और भाषा।

D. बाहरी सत्ता द्वारा उपनिवेशीकरण या विस्थापन का अनुभव।

 

2. मानवाधिकार संरक्षण

आदिवासियों को मानवाधिकार संरक्षण प्रदान करने के साथ ही उनकी भूमि, संसाधन, भाषा और सांस्कृतिक अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करने का उपाय करना ।

3. अंतरराष्ट्रीय मानक बनाना

भविष्य में आदिवासी अधिकारों को समर्पित एक अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज़ (declaration) तैयार करने की नींव रखना।

4. शिकायतें सुनना

राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न आदिवासी समूहों की समस्याएं सुनना और उनके शिकायतों को दूर करने का प्रयास करना ।

·         इस बैठक का महत्व – ऐसा पहली बार था जब वैश्विक स्तर पर (संयुक्त राष्ट्र के मंच पर) आदिवासी समुदायों को सीधे अपनी बात रखने का मौका मिला।

·         इसी बैठक की तिथि अर्थात्  9 अगस्त को बाद में विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day)के रूप में चुना गया।

·         1992 में संयुक्त राष्ट्र ने 1993 को अंतर्राष्ट्रीय वर्ष ("International Year of the World’s Indigenous People") घोषित किया।

·         संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 23 दिसंबर 1994 को आधिकारिक घोषणा के पश्चात् सन 1995 से विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day)का मनाना शुरू।

·         1995-2004 को पहला, और 2005-2015 को दूसरा अंतर्राष्ट्रीय दशक (International Decade for Indigenous Peoples) घोषित किया गया ।

2). क्यों मनाया जाता है ?

      संयुक्त राष्ट्र संघ ने आदिवासी समुदाय के विभिन्न समस्याओं को ध्यान में रखकर इसका वैश्विक एकीकरण किया और इस दिवस के आयोजन के संबंध में कुछ कारण प्रस्तुत किए, इसे ही विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day)के मुख्य उद्देश्य भी कहा जाता है जैसे -

1. अधिकारों की रक्षा :- आदिवासी समुदायों के अधिकारों को राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देना । आदिवासी समुदाय अक्सर भूमि, शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीतिक अधिकारों से वंचित रह जाते हैं जिसके लिए प्रत्येक वर्ग समुदाय को आगे बढ़कर सहयोग करना चाहिए।

2. संस्कृति का संरक्षण :- आदिवासी समुदायों को वैश्विक सांस्कृतिक विविधता हेतु संरक्षण प्रदान करना । आदिवासी भाषाएँ, कला, संगीत, नृत्य और परंपराएँ लुप्त होने के कगार पर हैं जिसका संरक्षण आवश्यक है।

3. समान अवसर :- सरकारों द्वारा चलाये जाने वाले विकास योजनाओं में आदिवासी समुदायों को भी बराबरी का दर्जा दिलाना।

4. जागरूकता फैलाना :- आम जनता और सरकारों में आदिवासी मुद्दों को लेकर समझ और संवेदनशीलता बढ़ाना। आदिवासी समुदायों को मुख्य धारा से जोड़कर विकास कार्यों को उन तक पहुँचाना ।

3. आदिवासी समुदायों के पारंपरिक ज्ञान और पर्यावरणीय समेकन को सुरक्षित रखना।

4. आदिवासी समुदायों की आवाज को नीति निर्माण से जोड़ना।

5. आदिवासी समुदायों की सम्मान के साथ मान्यता और सशक्तिकरण करना।

यह दिन हमें याद दिलाता है कि आदिवासी लोगों की सुरक्षा, सम्मान और अवसरों की उपलब्धता मानवता की प्रगति के लिए अत्यंत अनिवार्य है।

 

3. विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day):-  वैश्विक स्थिति

·         पुरे विश्व में अलग अलग संस्कृतियों से बंधे बहुत सारे आदिवासी समुदाय जीवन यापन करते हैं, पूरी दुनिया में लगभग 47 करोड़ (476 मिलियन) आदिवासी समुदाय के लोग हैं।

·         ये सभी लगभग 90 से अधिक देशों में निवासरत हैं।

·         आदिवासी समुदाय की जनसँख्या पूरी वैश्विक जनसंख्या का लगभग 6% हिस्सा है ।

·         आदिवासियों की 5,000 से अधिक अलग भाषाएँ और संस्कृतियाँ हैं।

कुछ उदाहरण इस प्रकार है -

देश/ महाद्वीप

आदिवासी समुदाय / जनजातीय समुदाय

भारत

गोंड, संथाल, भील, टोडा, मीणा आदि

ऑस्ट्रेलिया

एबोरिजिनल और टॉरेस स्ट्रेट आइलैंडर आदि

अमेरिका

नवाजो, माया, इनुइट आदि

अफ्रीका

मासाई, सान आदि

एशिया

अखा, लाहू, हमोंग, आइही आदि एवं भारत के जनजाति

यूरोप

सेल्ट्स, सामी, रोमानी, चुकची आदि

विस्तृत विवरण हेतु click करें विकिपीडिया

4. विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day)का वैश्विक स्तर पर महत्व

            अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्नता को देखते हुए और राष्ट्रीय संस्कृति में आदिवासियों के प्रभाव को देखते हुए इनका महत्व स्पष्ट प्रदर्शित होता है, जिसे निम्न बिन्दुओं पर समझ सकते हैं -

 (a) नीति निर्माण पर प्रभाव – संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) द्वारा आयोजित कार्यक्रमों, पैनल चर्चाओं व सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से जागरूकता बढ़ती है और नीति निर्माताओं को प्रेरणा मिलती है।

 (b) सांस्कृतिक आयोजन और जन समर्थन - भारत में पूर्वोत्तर राज्यों, मध्यप्रदेश, झारखण्ड, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ आदि (हैदराबाद, मेघालय, इंदौर, रांची, रायपुर, जगदलपुर आदि) जैसे शहरों मेंइस दिन आदिवासी समुदायों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ आयोजित की जाती हैं, जिससे उनकी पहचान और गर्व उभरकर आता है।

5.. भारत में विश्व आदिवासी दिवस

 भारत में विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day)की प्रासंगिकता – भारत में कम और ज्यादा मात्रा में लगभग हर विभिन्न राज्यों में आदिवासी/जनजातीय/मूलनिवासी समुदाय का निवास है। जिनका भारत में प्रासंगिक होना स्वाभाविक है ।

 

ü  भारत में आदिवासी लोगजो लगभग 8.6% जनसंख्या हैविभिन्न राज्यों में बसते हैं, विशेषकर पूर्वोत्तर और मध्य क्षेत्र में ।

ü  पूर्वोत्तर राज्यों (जैसे मेघालय), मध्य प्रदेश, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में यह दिवस शिक्षा, स्वशासन और सांस्कृतिक जागरूकता का प्रमुख मंच बनता है ।

ü  भारत में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day)के अवसर पर जनजातीय समुदायों के सम्मान में कई राज्य सरकारें और संगठन कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

ü  छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान आदि में इसे बड़े स्तर पर मनाया जाता है।  यहां परंपरागत नृत्य, खेल, गीत, और मेलों का आयोजन होता है।

 

6. आदिवासी समुदायों की चुनौतियाँ

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आधुनिकीकरण के बावजूद आज भी बहुत सारे क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय हासिये पर हैं, इनके पूर्णतः उत्थान हेतु बहुत सारी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई है -

(a) अत्यधिक गरीबी और स्वास्थ्य असमानताएँ - विश्व की आबादी में 6% होने के बावजूद आदिवासी समुदाय के ज्यादातर समुदाय गरीबों के समूह में हैं। उनके पास स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच है, और जीवन प्रत्याशा काफी कम है ।

(b) भूमि और संसाधन अधिकारों से वंचित - कई आदिवासी जनजातीय समूह अपनी पारंपरिक भूमि और संसाधनों से वंचित किए गए हैं, जिससे उनकी आजीविका खतरे में है ।

(c) सांस्कृतिक और भाषाई संकट - आदिवासी भाषाओं और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षण की आवश्यक्ता है, भाषा और संस्कृति का लोप होने से बचाना अपने आप में समस्या है। इसलिए UNESCO ने 2022–2032 को अंतर्राष्ट्रीय दशक घोषित कर इसका समर्थन किया है ।

(d) जलवायु परिवर्तन का सीधा असर – जनजातीय समुदाय को अपने पारंपरिक जीवन यापन और प्रथाओं के निर्वहन हेतु जल, जंगल और जमीन से जुड़े रहना पड़ता है मगर जलवायु परिवर्तन से इनको विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है ।

(e) भेदभाव और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी – आदिवासी समुदाय को अपनी उपस्थिति के अनुरूप राजनीतिक स्तर पर ज्यादा महत्व नहीं मिल पाया है क्योंकि कहीं कहीं पर अभी भी बाहुबली और बहुसंख्यक समुदायों द्वारा भेदभाव का शिकार होना पड़ता है ।

 

 7. निष्कर्ष

विश्व आदिवासी दिवस (World Tribal Day)सिर्फ़ एक उत्सव नहीं, बल्कि यह आदिवासी समुदायों की आवाज़ को दुनिया तक पहुँचाने का एक मंच है। यह हमें याद दिलाता है कि विकास के रास्ते पर सभी समुदायों को समान अवसर और सम्मान मिलना चाहिए।

      संयुक्त राष्ट्र संघ के अलावा सभी राष्ट्रों को स्वप्रेरणा से अपने मूल निवासियों हेतु मंच प्रदान करने का सार्थक प्रयास करना चाहिए और उनको मुख्यधारा से जुड़ी हुई मंचों पर प्रतिनिधित्व उपलब्द्ध कराना चाहिए

      इन सब प्रयसों के अलावा सभी आदिवासी समुदायों को नवाचार के साथ स्वयं की प्रासंगिकता बनाते हुए अपने संस्कारों, प्रथाओं की रक्षा करने के लिए स्वयं भी आगे आना चाहिए ।

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